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१६४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा का पावन प्रसंग है। एक बार भगवान् महावीर धर्म की दिव्य ज्योति जगाते हुए ब्राह्मणकुण्ड ग्राम में पहुंचे और चैत्य में विराजे । बहुसाल चैत्य ब्राह्मणकुण्ड एवं क्षत्रियकुण्ड के बीच में था। दोनों कुण्डपुरों की जनता भगवान् के प्रवचन-श्रवणार्थ उपस्थित हुई। ब्राह्मणकुण्ड ग्राम में ऋषभदत्त ब्राह्मण रहता था। आचारांग, कल्पसूत्र, आवश्यकचूर्णि' में उसे केवल ब्राह्मण लिखा है। पर भगवती4 में उसे चार वेदों के ज्ञाता के साथ श्रमणोपासक भी लिखा है। वह अपनी पत्नी देवानन्दा के साथ भगवान को वन्दन के लिए पहुँचा। भगवान महावीर को देखकर देवानन्दा को अपार प्रसन्नता हई। उसके स्तनों से दूध की धारा छूटने लगी। आँखों से आनन्दात्र बहने लगे। गौतम ने भगवान् से जिज्ञासा की-भगवन् ! इसके स्तनों से दूध की धारा क्यों छूटने लगी है ? आँखों से अश्र क्यों बह रहे हैं। भगवान ने स्पष्टीकरण करते हुए कहा-देवानन्दा ब्राह्मणी मेरी माता है। मैं इसका पुत्र हैं। भगवान ने गर्भ परिवर्तन की सारी घटना सुनाई। इसके पूर्व भगवान् महावीर के गर्भ परिवर्तन की बात किसी को ज्ञात नहीं थी। देवानन्दा और ऋषभदत्त के साथ सारी परिषद आश्चर्यचकित हो गई । उसके पश्चात भगवान् के धर्मोपदेश को सुनकर ऋषभदत्त ने दीक्षा ग्रहण की तथा विविध तप का अनुष्ठान कर एक मास की संलेखना द्वारा आत्मा को भावित करते हुए मोक्ष प्राप्त किया। इसी तरह देवानन्दा भी दीक्षित होकर मुक्त हुई। बाल तपस्वी मौर्य पुत्र और तामली अणगार
प्रस्तुत कथा का मूल स्रोत भगवतीसूत्र शतक तीन, उद्देशक प्रथम है । भगवान् महावीर का समवसरण मोका नगरी में लगा हआ था। ईशानेन्द्र भगवान के दर्शनार्थ आये। उन्होंने बत्तीस प्रकार के नाट्य किये। गणधर गौतम ने जिज्ञासा प्रस्तुत की, यह अपूर्व ऋद्धि इन्हें कैसे प्राप्त हुई ?
भगवान् ने समाधान करते हुए कहा-ताम्रलिप्ति नगर में तामली
१. आचारांग २, पृष्ठ २४३, बाबू धनपतसिंह २. कल्पसूत्र, सूत्र ७, पृष्ठ ४३. देवेन्द्रमुनि सम्पादित ३, आवश्यकचूणि, पूर्वार्द्ध, पत्र २३६ ४. भगवती ३/६/३८०, पत्र ८३७. ५. धम्मकहाणुओगे, बितियो खंधो, पृष्ठ ५८/२५४.
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