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श्रमण कथाएँ
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"मेरे पास असीम धन-सम्पदा है। तथापि मेरा किंचित् मात्र भी नहीं है। मिथिला नगरी के प्रदीप्त होने पर मेरा कुछ भी नहीं जलता है।"
यहाँ हमने तुलनात्मक दृष्टि से देखा कि एक ही कथावस्तु विविध धर्मग्रन्थों में अपनी मान्यता और सिद्धान्त के अनुसार ढाल दी गई है। जातक कथा का गद्य भाग अर्वाचीन है। 'राइस डेविडस' ने जातकों के सम्बन्ध में चिन्तन करते हुए लिखा है-बौद्ध साहित्य के नौ विभागों में जातक एक विभाग है। पर वह विभाग आज जो जातक प्रचलित हैं, उससे बिल्कुल भिन्न है। प्राचीन जातक के अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि प्राचीन जातक का अधिकांश भाग किसो एक ढाँचे में ढला हुआ नहीं था। उसमें पद्य-भाग था। वे केवल काल्पनिक कथाएँ (Fables), उदाहरण (Parables) और आख्यायिकाएँ (Legends) मात्र थे। दूसरी बात यह है कि जो वर्तमान में जातक उपलब्ध हैं, वे प्राचीन जातक के अंशमात्र है।1
____ अपन्नक (सं० १), मखादेव (सं०६), सुखबिहारी (सं० १०), तित्तिर (सं० ३७), लित्त (सं०६१), महा-सूदस्सन (सं० ६५), खण्हावट्ट (सं० २०३) मणि-कण्ठ (सं० २५०), बक-ब्रह्म (सं० ४०५) आदि जातकों के सूक्ष्म अध्ययन से राइस डैविड्स इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बुद्ध से पूर्व भी जनकथायें इन जातकों में थी। ये बुद्ध से भी प्राचीन हैं। ये जातक केवल बौद्धमत की ही नहीं हैं, ये भारतीय लोक-कथाओं के संग्रह हैं। बौद्धविज्ञों ने अपने-अपने आचार-विचार के अनुसार कुछ परिवर्तन कर इसे अपनाया। इससे यह स्पष्ट है कि ईसा पूर्व छठी शताब्दी से पहले कई कथायें प्रचलित थीं। जिन कथाओं को भारत की जैन, बौद्ध और वैदिक इन तीनों धाराओं ने अपनाया। __इन सभी कथाओं का तुलनात्मक दृष्टि से अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि एक परम्परा ने दूसरो परम्परा का अनुसरण किया है । पर किस परम्परा ने किसका अनुसरण किया, यह अन्वेषणीय है ।
ऋषभदत्त और देवानन्दा भगवती शतक नौवाँ, उद्देशक तेतीस में ऋषभदत्त और देवानन्दा
१. Buddhist India. pp. 196-197. २. Ibid, p. 197.
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