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श्रमण कथाएँ
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कुल में उन्हें समस्त ऋद्धि, सम्पत्ति, प्रतिसम्पदा उपलब्ध होती है । उनका तथागत बुद्ध से कभी साक्षात्कार नहीं होता। वे एक साथ अनेक हो सकते है । बौद्ध ग्रन्थों में नमि की तरह ही प्रत्येकबुद्ध का प्रसंग है। वह इस प्रकार है
विदेह राष्ट्र में मिथिला नगरी का निमि नाम का राजा था। गवाक्ष में बैठा हुआ राजा राज-पथ को निहार रहा था । एक चील मांस के टुकड़े को लेकर अनन्त आकाश में उड़ी जा रही थी। गिद्ध पक्षियों ने देखा, वे मांस के टुकड़े की छीना-झपटी करने लगे। चील के मुंह से मांस का टुकड़ा छूट गया। दूसरे पक्षियों ने उसे ग्रहण किया। अन्य पक्षी उसके पीछे पड़ गये । निमि राजा ने सोचा-जो कामभोगों को ग्रहण करता है, वह दुःख पाता है। मेरे सोलह हजार स्त्रियाँ हैं, मुझे काम-भोगों का परित्याग कर सुखपूर्वक रहना चाहिए ।
नमि प्रव्रज्या की आंशिक तुलना हम "महाजनक जातक" से भी कर सकते हैं। वह प्रसंग इस प्रकार है-मिथिलानगरी में महाजनक राजा था। उसके अरिट्ठजनक और पोलजनक ये दो पुत्र थे। राजा की मृत्यु के बाद अरिट्ठजनक राजा हुआ। कुछ समय के बाद दोनों भाइयों में मनमुटाव हो गया। पोलजनक ने प्रत्यन्त ग्राम में जाकर सेना इकट्ठी की और भाई को युद्ध के लिए ललकारा। युद्ध में अरिट्ठजनक मारा गया । पति की मृत्यु से पत्नी को आघात लगा। वह राजमहल को छोड़ कर निकल गई। वह गर्भवती थी, उसने पुत्र को जन्म दिया। पितामह के नाम पर उसका नाम भी महाजनक रखा। बड़े होने पर वह पिता के राज्य को लेने के लिए पहुँचा । पोलजनक की मृत्यु हो चुकी थी। उसके कोई सन्तान नहीं थी, अतः महाजनक राजा बन गया। सोवलीकुमारी से उसका पाणिग्रहण हुआ। दीर्घायु नामक पुत्र हुआ। एक दिन महाजनक उद्यान में गये, वहाँ आम के दो वृक्ष थे। एक आम से लदा हुआ था और दूसरा ढूंठ की तरह खड़ा था। राजा ने एक बढ़िया पके फल को तोड़ा। राजा के पीछे चलने वाले सभी
१ कुम्भजातफ, सं ४०८, जातक खण्ड ४, पृष्ठ २६ २ देखिए-उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन-मुनि नथमलजी ।
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