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________________ श्रमण कथाएँ १५७ यह कथा-प्रसंग नारी की महत्ता को उजागर करता है। नारी सदा मानव की पथ-प्रदर्शिका रही है। जब मानव पथ से विचलित हआ, तब नारी ने उसका सच्चा पथ-प्रदर्शित किया । जैसे-ब्राह्मी और सुन्दरी ने बाहुबली को अहंकार के गज से उतरने की प्रेरणा दी। ____ इस तरह अरिष्टनेमि के युग के अनेक श्रमणों का निरूपण इस अध्याय में हुआ है । इसके पश्चात पुरुषादानीय भगवान् पार्श्व के तीर्थ में अंगति, सुप्रतिष्ठित, पूर्णभद्र आदि की बहत हो संक्षेप में कथायें हैं । जितशत्र और सूबुद्धि प्रधान की कथा भी इसमें दी गई है। इस कथा में दुर्गन्धयुक्त जल को विशुद्ध बनाने की पद्धति पर चिन्तन किया है । आधुनिक युग की फिल्टर पद्धति भी उस यूग में प्रचलित थी। विश्व में कोई भी पदार्थ एकान्त रूप से न पूर्ण शुभ है और न पूर्ण रूप से अशुभ ही है। प्रत्येक पदार्थ शुभ से अशुभ में परिवर्तित हो जाता है तथा प्रत्येक पदार्थ अशुभ से शुभ में परिवतित हो सकता है। अतः अन्तर्मानस में किसी के प्रति घृणा करना अनुचित है । यह बात प्रस्तुत कथानक में स्पष्ट की गई है। यहाँ पर एक बात स्मरण रखने योग्य है-भगवान् ऋषभदेव और भगवान महावीर इन दो तीर्थंकरों के अतिरिक्त शेष बाबीस तीर्थंकरों के श्रमण चातुर्याम महाव्रत के पालक थे। पर बाबीस तीर्थंकरों के श्रमणोपासक द्वादश व्रतों को ही धारण करते थे। उनके लिए पाँच ही अणुव्रत थे, चार नहीं। नमि राजषि उत्तराध्ययन सूत्र के अध्ययन नौवें में नमि राजर्षि का वर्णन है। श्रमण वही बनता है, जिसे बोधि प्राप्त हो। वह बोधि तीन प्रकार की है, जो स्वयं प्राप्त होती है वह "स्वयंबुद्ध" है, जिसे किसी घटना के निमित से बोधि प्राप्त होती है वह "प्रत्येकबुद्ध" है और जो बोधि प्राप्त व्यक्तियों के उपदेश से बोधिलाभ करते हैं वे "बुद्धबोधित" हैं। नमि राजर्षि प्रत्येकबुद्ध हैं। १ "तए णं सुबुद्धी जियसत्तुस्स विचित्त केवलिपण्णत्त चाउज्जामं धम्म परिकहेइ""तं इच्छामि णं तव अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खाव्वइयं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । -धर्म कथानुयोग, पृष्ठ ५४ सू. २२४ २ नन्दीसूत्र, २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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