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________________ १५४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा के सामने व्यक्त करने लगे । राजीमती ने वमन कर उसे पीने के लिए कहा । रथनेमि ने क्रुद्ध होकर कहा, क्या तू मेरा अपमान करती है ? राजीमती ने कहा- भाई के द्वारा वमन किये हुए को ग्रहण करना क्या तुम्हारे लिए उपयुक्त है ? रथनेमि का विवेक जागृत हो उठा । यहाँ एक प्रश्न चिन्तनीय है । वह यह है- अर्हत् अरिष्टनेमि के दीक्षा लेने के पश्चात रथनेमि ने भी दीक्षा ग्रहण की। आवश्यनिर्युक्ति' वृत्ति और आचार्य हेमचन्द्र ने त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र' में लिखा है - रथनेमि चार सौ वर्ष गृहस्थाश्रम में रहे, एक वर्ष छद्मस्थ अवस्था में रहे और पाँच सौ वर्ष केवली पर्याय में । उनका नौ सौ वर्ष का आयुष्य हुआ । इसी तरह कुमारावस्था छद्मस्थ अवस्था और केवली अवस्था का विभाग करके राजीमती ने भी उतने ही आयुष्य का उपभोग किया। अरिष्टनेमि तीन सौ वर्ष कुमारावस्था में रहे, सात सौ वर्ष छद्मस्थ व केवली अवस्था में रहे । इस तरह उन्होंने एक हजार वर्ष का आयुष्य भोगा 14 १ (क) नियुक्ति - रहनेमिस्स भगवओ, गिहत्थए चउर हुति वाससया । संवच्छरछउमत्थो, पंचसए केवली हुति ॥ नायव्वं । नायव्व ॥ नववास सए वासा - हिए एसो उ चेव कालो, उ सव्वा उगस्स राव (य) मईए उ - अभिधान राजेन्द्र कोष, भाग ६, पृ ४६६ गृहस्थ पर्याय:, वर्ष छद्मस्थपर्यायः वर्ष मिलितानि नव वर्ष शतानि वर्षाधिकानि - अभिधान. भा. ६, पृष्ठ ४६६ - त्रिषष्टि० ८।१२।११२ (ख) तत्र चत्वारि वर्षशतानि शतकपञ्चकं केवलिपर्याय इति, सर्वाऽऽयुरभिहितम् । २ चतुरब्दशतो गेहे छद्मस्थो वत्सरं पुनः । केवली पञ्चाब्दशतीमित्यायुरथनेमिनः ॥ ३ ईदृगायुः स्थिती राजीमत्यप्यासीत्तपोधना । कौमार-छद्मवासित्व, केवलित्व विभागतः ॥ ४ ( क ) तिन्नेव य वाससया कुमारवासो अरिट्ठनेमिस्स । Jain Education International सत्त य वाससयाई सामण्णे सोइ परियाओ । - आवश्यकनियुक्ति ३२० - त्रिषष्टि० ८।१२।११३ (ख) कल्पसूत्र, सूत्र १६८, पृ० २३८ श्री देवेन्द्रमुनि सम्पादित (ग) अरिष्टनेमै स्त्रीणि वर्षशतानि कुमारवासः, राज्यानभ्युपगमात् राज्यपर्याया भावः सप्त वर्षशतानि भवति श्रामण्य पर्याय: । - आवश्यकमलयगिरीवृत्ति, पृष्ठ २१३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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