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________________ श्रमण कथाएँ १४७ सामान गाथाएँ जैन परम्परा बौद्ध परम्परा उत्तराध्यन, अध्ययन १३ वित्त संभूत जातक (सं० ४६८) श्लोक गाथा दासा दसण्णे आसी चण्डालाहुम्ह . अवन्तीसु मिया कालिंजरे नगे। मिगा नेरञ्जरं पति, हंसा मयंगतीरे उक्कूसा नम्मदा तीरे सोवागा कासिभूमिए ॥६॥ त्यञ्ज ब्राह्मण खत्तिया ॥१६।। सव्वं सुच्चिण्णं सफलं नराणं सब्बं नरानं सफलं सुचिण्णं कडाण कम्माण न मोक्ख अस्थि । न कम्मना किञ्चन मोघमस्थि । अत्थेहि कामेहि य उत्तमेहि पस्सामि सम्भूतं महानुभावं आया ममं पुण्णफलोववेए ॥१०॥ सकम्मना पुजफलूपपन्न ॥१॥ जाणासि संभूय ! महाणुभागं सब्बं नरानं सफलं सुचिण्णं महिड्ढियं पुण्णफलोववेयं। न कम्मना किञ्चन मोघमत्थि । चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं ! चित्तं विजानाहि तत्थ एव देव इड्ढी जुई तस्स वि य प्पभूया ॥११॥ इद्धो मन तस्स यथापि तुय्हं ।।३।। महत्थरूवा वयणप्पभूया सुलद्ध लाभा वत मे अहोसि, गाहाणुगीया नरसंघमज्झे। गाथा सुगीता परिसाय मज्झे। जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया सोहं इसि सील वतूपपन्न इहऽज्जयन्ते समणोम्हि जाओ ॥१२॥ दिस्वा पतीतो सुमनो हमस्मि ॥८॥ उच्चोयए महु कक्के य बम्भे पवेइया आवसहा या रम्मा। इमं गिहं चित्तधणप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं ॥१३॥ नहि गीएहि य वाइएहिं रम्मं च ते आवसथं करोन्तु नारीजणाइं परिवारयन्तो। नारीगणेहि परिचारयस्सु । भुजाइ भोगाहि इमाइ भिक्खू । करोहि ओकासं अनुग्गहाय मम रोयई पव्वज्जा हु दुक्खं ॥१४॥ उभो पि इमं इस्सरियं करोम ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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