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१४६ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा णसी में श्वपाक के पुत्र में उत्पन्न होना। ५. देवलोक में उत्पन्न होना। ६. चित्त का जीव पुरिमताल नगर में ईभ्य श्रेष्ठी के यहाँ पुत्र रूप में और संभूत का जीव काम्पिल्यपुर में ब्रह्मराजा की रानी चूलनी के गर्भ से ब्रह्मदत्त रूप में उत्पन्न हुआ। बौद्ध-साहित्य में :
बौद्ध साहित्य में संक्षेप में कथा का रूप इस प्रकार है१. निरेंजरा नदी के किनारे मृगी की कुक्षी में उत्पन्न होना । २. नर्मदा नदी के किनारे बाज पक्षी के रूप में उत्पन्न होना।
३. चित्त का जीव कोशाम्बी में पुरोहित का पुत्र हुआ तथा संभूत का जीव पांचाल राजा के रूप में उत्पन्न हुआ। जब दोनों भाई परस्पर मिलते हैं तो चित्त संभूत को उपदेश प्रदान करता है, किन्तु संभूत का मन भोगों से विरत नहीं होता। जिससे चित्त संभूत के सिर पर धूल गिराता है
और स्वयं हिमालय की ओर प्रस्थान कर जाता है । जब राजा संभूत ने यह देखा तो उसके अन्तर्मानस में वैराग्य समुत्पन्न हुआ और वह भी हिमा. लय को चल दिया । चित्त ने उसे योग विद्या सिखलाई, जिससे संभूत को ध्यान-लाभ हुआ। इस प्रकार चित्त और संभूत दोनों ब्रह्मलोकवासी हए।
जैन और बौद्ध दोनों ही कथा-वस्तुओं का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि जैन कथा-वस्तु विस्तृत है। कुमार ब्रह्मदत्त अपने मन्त्रीपुत्र वरधनु के साथ घर से निकल कर दूर चला गया और पुनः लौटकर नगर में नहीं आते तब तक की कथा छोटी-बड़ी अनेक घटनाओं के कारण जटिल हो गई है। सारी अवान्तर घटनाएँ ब्रह्मदत्त से सम्बन्धित हैं तथा उन अवान्तर घटनाओं का अन्त होता है किसी कन्या के साथ विवाह या पाणिग्रहण करने पर। कुमार ब्रह्मदत्त वरधनु के साथ अपनी नगरी में लौटता है। राज्याभिषेक होने के पश्चात् उसे अपने भ्राता की मधुर स्मृति हो आती है। दोनों भाई मिलते हैं । मुनि चित्त का जीव धर्माराधन कर मुक्त बनता है। कुमार ब्रह्मदत्त भोगों में आसक्त होकर नरक में जाता है। जैनदृष्टि से संभूत का जीव कुमार ब्रह्मदत्त नरक का अधिकारी बनता है तो बौद्ध दृष्टि से संभूत ब्रह्मलोक में जाता है । सरपेन्टियर ने लिखा है-इन दोनों कथानकों में साम्य ही नहीं अपितु दोनों की गाथाओं में भी पूर्ण साम्य है । उदाहरण के रूप में देखिए
१ जातक चतुर्थ खण्ड, संख्या ४६८, चित्त संभूत जातक, पृष्ठ ६०० २ The Uttaradhyayana Sutra, p. 45
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