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श्रमण कथाएँ
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गंगदत्त मुनिसुव्रत स्वामी के तीर्थ में होने वाले गंगदत्त की कथा भगवती शतक १५ और उद्देशक ५ में दी गई है । गंगदत्त देव श्रमण भगवान् महावीर की सभा में उपस्थित हुआ । गणधर गौतम की जिज्ञासा पर भगवान् महावीर ने उसका पूर्वभव सुनाते हुए कहा- हस्तिनापुर में गंगदत्त नामक गाथापति था। अरिहंत मुनिसुव्रत के पावन-प्रवचन को श्रवण कर तथा ज्येष्ठ पुत्र की अनुमति प्राप्त कर गंगदत ने प्रव्रज्या ग्रहण की। उत्कृष्ट तप-जप की आराधना कर यह देव बना और यहाँ से आयु पूर्णकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होगा। प्रस्तुत कथा का सम्बन्ध मुनिसुब्रत स्वामी के साथ है । यही इस कया की विशेषता है। प्राग ऐतिहासिक काल का यह प्रसंग बहुत ही प्रेरणादायी है ।
चित्त-संभूति उत्तराध्ययन १३वें अध्ययन में चित्त-संभूति की कथा दी गई है । इस कथा वस्तु का बौद्ध परम्परा के चित्त-संभूति जातक में भी वर्णन है। दोनों ही परम्पराओं के ग्रन्थों में कथा वस्तु बहुत कुछ समानता लिये हुए है। दोनों ही कथाकारों ने कथा-वस्तु गद्य और पद्य में गठित की है। कथा-वस्तु गद्य में है तो संवाद पद्य में है। कथा ब्रह्मदत्त की उत्पत्ति से प्रारम्भ होती है। इसमें पैंतीस श्लोक हैं । टीकाकार नेमिचन्द्र ने सुखबोधावृत्ति में सम्पूर्ण कथा दी है । उत्तराध्ययन के मूल में कथा का प्रारम्भ है। दोनों भाई चित्त और संभूत परस्पर मिलते हैं तथा सुख-दुःख के फल-विपाक की चर्चा करने लगते हैं। वित्त का जीव श्रमण अवस्था में ब्रह्मदत्त को संसार की निःसारता का परिज्ञान कराते हुए कहता है-'ऐश्वर्य विद्युत की तरह चंचल है और भोग भी नश्वर हैं, अतः तुम श्रमण धर्म को स्वीकार कर अपने जीवन को पावन बनाओ।' जब चित्त मुनि ने देखा- ब्रह्मदत्त श्रमण बनने की स्थिति में नहीं है तो मुनि ने उसे गृहस्थाश्रम में रहकर ही धर्म-साधना करने की प्रेरणा दी। पर ब्रह्मदत्त का मन धर्म में नहीं था। चित्त मुनि धर्माराधन कर सिद्ध हुआ तथा ब्रह्मदत्त भोगों में आसक्त होकर नरक का अधिकारी बना । पाँचवीं, छठी और सातवीं गाथा में पूर्वजन्मों का नामोल्लेख हुआ है। पर वहाँ विस्तार से चर्चा नहीं है, टीकाकार नेमिचन्द्र ने पूर्व के पाँच भवों का सविस्तृत वर्णन किया । संक्षेप में छह भव इस प्रकार हैं-१. दशपुर नगर में शांडिल्य ब्राह्मण की दासी यशोमती के गर्भ से पुत्र रूप में पैदा होना । २. कालिंजर पर्वत पर मृगी की कुक्षी से युगल रूप में उत्पन्न होना । ३. मृतगंगा के तीर पर हंसी के गर्भ में उत्पन्न होना । ४. वारा
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