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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
एक सुनार की कन्या से, क्षत्रिय गजसुकुमाल ने सोमिल ब्राह्मण की कन्या से, राजा जितशत्रु ने चित्रकार की कन्या से, राजकुमार ब्रह्मदत्त ने ब्राह्मण तथा वणिकों की कन्याओं से पाणिग्रहण किया था।
वैदिक परम्परा के ग्रन्थों से यह स्पष्ट है कि विवाह का उद्देश्य सन्तानोत्पत्ति था । सन्तानोत्पत्ति के लिए एक से अधिक विवाह करने की अनुमति स्मृतिकारोंने प्रदान की । बहुपत्नीत्व विवाह का यही मुख्य उद्देश्य रहा था। आगे चलकर बहु-विवाह विशिष्ट व्यक्तियों के गौरव की चीज हो गई। राजा और राजकुमार अपने अन्तःपुरों में अधिक से अधिक पत्नियाँ रखने में गौरव का अनुभव करते थे। अनेक राजाओं के साथ स्नेहपूर्णसम्बन्ध स्थापित होने के कारण बहुविवाह राजनीतिक सत्ता को शक्तिशाली बनाने में सहायक होता था। इसीलिए महाबल राजकुमार का भी आठ कन्याओं के साथ विवाह होने का उल्लेख है ।
जैन कथाओं को यह महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि जो व्यक्ति भोग के दलदल में फंसा है, वह भी बीतरागवाणी को श्रवण कर भोग को रोग समझकर मुक्त हो जाता है । वैराग्यभावना प्रबुद्ध होने पर कोई भी शक्ति उन्हें संसार में रोकने के लिए समर्थ नहीं होती। प्रव्रज्या ग्रहण करने के पश्चात् साधक पहले अध्ययन करता है, आगम-साहित्य का दोहन करता है और उसके पश्चात् उग्र जप-तप की साधना कर कर्मों को नष्ट करने का प्रयास करता है । यहाँ से अपना आयुष्य पूर्ण कर देव बनता है ।
उत्तराध्ययन के अठारहवें अध्ययन की पचासवीं गाथा में भो महाबल का उल्लेख हुआ है। टीकाकार नेमिचन्द्र ने यह कथा विस्तार से दी है और अन्त में व्याख्याप्रज्ञप्ति का निर्देश किया है पर निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि वह महाबल भगवती में वर्णित ही है या अन्य ? सम्भव है विपाकसूत्र, द्वितीय श्रुतस्कन्ध, अध्याय ७ में वर्णित महापुर नगर का राजा बल का पुत्र महाबल हो। भगवती का महाबल उस महाबल से पृथक् होना चाहिए।
१ ज्ञातृधर्मकथा १४ पृ० १४८. २ अन्तकृद्दशा ३, पृष्ठ १६. ३ उत्तराध्ययन टीका ६, पृष्ठ १४१ ४ उत्तराध्ययन टीका, पृष्ठ १८८ से १९२ तक ।
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