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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
करें। आपस्तंभ' शांखायन,' बोधयन, भारद्वाज, गोभिल, गृहसूत्र तथा याज्ञवल्क्य में यह स्पष्ट संकेत है कि वर्षों की परिगणना गर्भाधान से करनी चाहिए। शांखायन गृहसूत्र आदि में वर्षों के सम्बन्ध में विभिन्न मत रहे हैं । धर्मशास्त्रों में उपनयन के लिए मुहूर्त आदि की भी चर्चा की गई है। उपनयन के समय वस्त्र, दण्ड, मेखला, यज्ञोपवीत, गायत्री उपदेश आदि देने की विधि भी बताई गई है।
महाबल की कथा में यह भी बताया है कि जब महाबल आठ वर्ष से कुछ अधिक उम्र का हुआ तब वह कलाचार्य के पास अध्ययन के लिए भेजा गया और पूर्ण यूवा होने पर उसका आठ राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ । यहाँ पर दो बातें चिन्तनीय हैं कि प्राचीन काल में शिक्षा का प्रारम्भ आठ वर्ष का या उससे कुछ अधिक उम्र होने पर होता था, क्योंकि तब तक बालक का मस्तिष्क शिक्षा ग्रहण करने योग्य हो जाता था। यही कारण है आगम साहित्य में और परवर्ती साहित्य में यह वर्णन अनेक स्थलों पर हुआ है । आठ वर्ष की अवस्था में उपनयन संस्कार भी हो
१ आपस्तंभ० १०/२. २ शांखायन० २/१. ३ बोधायन० २/५/२. ४ भारद्वाज० १/१. ५ गोभिल० २/१०. ६ याज्ञवल्क्य० १/१४. ७ (क) 'द जैन सिस्टम ऑफ एजुकेशन' जर्नल ऑफ द यूनिवर्सिटी ऑफ बोम्बे,
जनवरी १९४०, पृष्ठ २०६ आदि (जगदीशचन्द्र, लाइफ इन एन्शिएन्ट इन्डिया एज डिपिक्टेड इन जैन केनन्स, ज० जै० के० पृष्ठ १६६ पर उद्धृत एच० आर० कापड़िया) डी. सी. दासगुप्त. (ख) (i) 'जैन सिस्टम ऑफ एजुकेशन' पृष्ठ ७४.
(ii) भगवती (अभयदेव वृत्ति) ११/११, ४२६ पृ० ६६६. (iii) नायाधम्मकहाओ, १/२०, पृष्ठ ३१, (iv) कथाकोषप्रकरण, पृ० ८. (v) ज्ञानपंचमी कहा, ५.६२ आदि ।
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