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________________ उत्तम पुरुषों की कथाएँ १३७ नौ वासूदेव तथा नौ प्रतिवासूदेव इस प्रकार सत्ताईस विशिष्ट व्यक्ति होते हैं । वासुदेव अर्धचक्री होते हैं। वे तीन खण्ड के अधिपति होते हैं । वे उत्तम पुरुष माने गये हैं । वे ओजस्वी, तेजस्वी, बलशाली और सुरूप होते हैं । वे काँत, सौम्य, प्रियदर्शी होते हैं । वे महाबली, अप्रतिहत और अपराजित होते हैं। शत्रुओं का अच्छी तरह से मर्दन करने वाले होते हैं। हजारों शत्र ओं के मान को एक क्षण में नष्ट कर देते हैं। वे दयालु, अमत्सर, अचपल और अचण्ड होते हैं। उनका स्वभाव बहत ही मधुर होता है। उनकी वाणी गम्भीर, मद् तथा सत्य होती है। उनके शरीर में अनेक शुभ लक्षण होते हैं। वे चन्द्र की तरह सौम्य, सूर्य के समान प्रचण्ड, प्रकाण्ड दण्डनीतिज्ञ, समुद्र के समान गम्भीर, युद्ध में दुर्द्धर तथा धनुर्धर होते हैं। वे राजवंश में तिलक के समान होते हैं। बलदेव के हाथ में हल होता है और वासुदेव धनुष रखते हैं । वासुदेव शंख, चक्र, गदा, शक्ति और नन्दक धारण करते हैं । उनके मुकुट में श्रेष्ठ, उज्ज्वल, शुक्ल, विमल कौस्तुभमणि होती है और कान में कुण्डल होते है। उनकी आँखें कमल के समान होती हैं । उनके गले में एकावली हार होता है। श्रीवत्स का लांछन होता है तथा पंचरंगों के सुगन्धित फूलों की माला होती है। उनके अंगोपांग में आठ सौ प्रशस्त चिन्ह होते हैं। उनके अंगोपांग सर्वांग सुन्दर होते हैं । बलदेव नीले तथा वासुदेव पीले रंग के वस्त्र धारण करते हैं। बलदेव निदानरहित होत हैं तो वासुदेव निदानकृत होते हैं। बलदेव ऊर्ध्वगामी होते हैं तो वासुदेव अधोगामी होते हैं। प्रतिवासुदेव को वासुदेव पराजित करते हैं और अन्त में स्वचक्र से ही प्रतिवासुदेव की मृत्यु होती हैं । बलदेव, वासुदेव के पूर्वभव तथा सभी के नाम, माता-पिताओं के नाम आदि का निरूपण प्रस्तुत ग्रन्थ में हआ है । अचल बलदेव अस्सी धनुष ऊँचे थे। विजय बलदेव तिहत्तर लाख वर्ष आयु भोगकर सिद्ध हुए। सुप्रभ बलदेव इकावन लाख वर्ष सर्वायु भोगकर सिद्ध हुए। नन्दन बलदेव तैतीस धनुष ऊँचे थे तथा राम बलदेव दस धनुष ऊँचे थे। ___इस तरह विपुल सामग्री बलदेव, वासुदेव के सम्बन्ध में प्राचीन ग्रन्थों में दी गई है । आगामी उत्सपिणी काल में होने वाले बलदेव, वासुदेव तथा प्रतिवासुदेव का भी उनमें निरूपण हुआ है। इस प्रकार उत्तम पुरुषों की कथायें हैं। १ आवश्यकनियुक्ति, गाथा ४१५ २ आवश्यकनियुक्तिभाष्य, गाथा ४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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