________________
उत्तम पुरुषों की कथाएँ
१३५
८. माणनिधि-कवच, ढाल, तलवार आदि विविध प्रकार के दिव्य आयुध, युद्धनीति तथा दण्डनीति आदि की जानकारी कराने वाली।
६. शंखनिधि-विविध प्रकार के वाद्य-काव्य नाट्य-नाटक आदि की विधि का ज्ञान कराने वाली ।
ये सभी निधियाँ अविनाशी होती हैं, दिग्विजय से लौटते हुए गंगा के पश्चिमी तट पर, अट्ठमतप के तदुपरान्त चक्रवर्ती सम्राट को प्राप्त होती हैं । प्रत्येक निधि एक-एक हजार यक्षों से अधिष्ठित होती हैं । इनकी ऊँचाई आठ योजन, चौड़ाई नौ योजन तथा लम्बाई दस योजन होती है । ये सभी निधियाँ स्वर्ण और रत्नों से परिपूर्ण होती हैं, चन्द्र और सूर्य के चिह्नों में चिह्नित होती हैं, तथा पल्योपम की आयु वाले नागकुमार जाति के देव इनके अधिष्ठायक होते हैं ।1।
ये नौ निधियाँ कामवृष्टि नामक गृहपति-रत्न के अधीन थीं एवं चक्रवर्ती के समस्त मनोरथों को सदैव पूर्ण करती थी।
हिन्दू धर्मशास्त्रों में इन नव-निधियों के नाम इस प्रकार से बताये
१. महापदम २. पदम ३. शंख ४. मकर ५. कच्छप ६. मूकून्द ७. कून्द ८. नील और ६. खर्व। ये निधियाँ कुबेर का खजाना भी कही जाती हैं।
भरत महाराज ने साठ हजार वर्षों की अवधि में षट् खण्ड पर विजय-पताका फहरा कर चक्ररत्न का अनुसरण करते हुए विनीता नगरी की ओर प्रस्थान किया। बत्तीस हजार मुकुटधारी महाराजा भरत के अधीन थे। विनीता नगरी चिर काल के बाद अपने स्वामी को पाकर फूली नहीं समा रही थी। षटखण्ड पर विजय करने के कारण एक विशाल अभिषेक मण्डप तैयार किया गया और भरत महाराज ने आभियोगिक देवों से कहा-मेरा महाभिषेक करो। आभियोगिक देवों ने भरत महाराज का अभिषेक किया। बत्तीस हजार राजाओं ने तथा सेनापतिरत्न, सार्थवाहरत्न, वार्धकरत्न, पुरोहितरत्न आदि ने भी भरत का महाभिषेक किया तथा अपने कर्तव्य का पालन किया।
१ त्रिषष्टि० १/४/५७४-५८७ २ हरिवंशपुराण--जिनसेन, ११/१२३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org