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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
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वैदिक साहित्य के चौदह रत्न
१. हाथी २. घोड़ा ३. रथ ४. स्त्री ५. बाण ६. भण्डार ७. माला ८. वस्त्र ६. वृक्ष १० शक्ति ११. पाश १२. मणि १३ छत्र और १४. विमान । चक्रवर्ती की नव निधियाँ
सम्राट भरत के पास नौ निधियाँ थीं जिनसे वे मनोवांछित वस्तुएँ प्राप्त करते थे । निधि का अर्थ खजाना है । आचार्य अभयदेव के अनुसार चक्रवर्ती को अपने राज्य के लिए उपयोगी सभी वस्तुओं की प्राप्ति इन नौ निधियों से होती थी । इसलिए इन्हें नव निधान के रूप में गिनाया है । ( स्थानांग वृत्ति पत्र ४२६) । वे नव निधियाँ निम्न प्रकार हैं
१. नैसर्पनिधि - यह निधि ग्राम-नगर-द्रोणमुख-मंडप आदि स्थानों के निर्माण में सहायक होती है ।
२. पांडुकनिधि - मान- उन्मान और प्रमाण आदि का ज्ञान कराती है तथा धान्य और बीजों को उत्तम करती है ।
३. पिंगलनिधि - यह निधि मनुष्य एवं तिर्यंचों के सर्वविध आभूषणों की विधि का ज्ञान कराने वाली तथा योग्य आभरण प्रदान करती है ।
४. सर्वरत्ननिधि - इस निधि से वज्र, वैडूर्य, मरकत, माणिक्य, पद्मराग, पुष्पराज आदि बहुमूल्य रत्न प्राप्त होते हैं ।
५. महापद्मनिधि - यह निधि सभी प्रकार के शुद्ध एवं रंगीन वस्त्रों की उत्पादिका है । किन्हीं - किन्हीं ग्रन्थों में इसका नाम पद्मनिधि है ।
६. कालनिधि - वर्तमान, भूत, भविष्य, कृषि कर्म, कलाशास्त्र, व्याकरणशास्त्र आदि का यह निधि ज्ञान कराती है ।
मोती, प्रवाल, लोहा आदि की
७. महाकालनिधि - सोना, चाँदी, खानें उत्पन्न कराने में सहायक होती है ।
१ (क) त्रिषष्टि० १/४
(ख) ठाणांग सूत्र, ठाणा ६, सूत्र १६ (ग) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, चक्रवर्ती अधिकार
(घ) हरिवंशपुराण, सर्ग ११
(ङ) माघनन्दीविरचित शास्त्रसार समुच्चय, सूत्र १८, पृष्ठ ७४
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