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उत्तम पुरुषों की कथाएँ १३३ ७. चर्म-रत्न-दिग्विजय के समय नदियों को पार कराने में यह रत्न नौका के रूप में बन जाता है और म्लेच्छ (अनार्य) नरेशों के द्वारा जल-वृष्टि कराने पर यह रत्न सेना को सुरक्षा करता है ।
८. सेनापति-रत्न-यह सेना का प्रमुख होता है । वासुदेव के समान शक्तिसम्पन्न होता है। वह चार खण्डों पर विजय करता है।
६. गाथापति-रत्न-यह रत्न चक्रवर्ती की सेना के लिए उत्तम भोजन की व्यवस्था करता है। दिगम्बर ग्रन्थों में गाथापति रत्न को गृहपति-रत्न कहा है । उसका नाम है-कामवृष्टि गृहपति रत्न !
१०. वर्धकी-रत्न-यह चक्रवर्ती को सेना के लिए आवास-व्यवस्था करता है। उन्भग्नजला, निमग्नजला आदि नदियों पर पुल बाँधने का काम भी यह रत्न करता है ।
११. पुरोहित-रत्न-यह ज्योतिषशास्त्र, स्वप्नशास्त्र, निमित्तशास्त्र, लक्षण और व्यंजन आदि का पूर्ण ज्ञाता होता है। देवी उपद्रवों को शान्त करता है।
१२. स्त्री-रत्न-यह सर्वांग सुन्दरी होती है। सदा युवती बनी रहती है । इसे तीव्र भोगावलो कर्म का उदय होता है । इसके प्रति चक्रवर्ती का अत्यधिक राग होता है ।
१३. अश्व-रत्न-यह श्रेष्ठ अश्व एक क्षण में सौ योजन लांघ जाने की शक्ति रखता है। कीचड़, जल, पहाड़, गुफा, आदि विषम स्थलों को भी सहज पार कर जाता है। भरत चक्रवर्ती के अश्व-रत्न का नाम 'कमलापीड़' था।1
१४. हस्ति-रत्न- यह ऐरावत हाथी की तरह सर्वगुणसम्पन्न होता है।
प्रत्येक रत्न के एक-एक हजार देव रक्षक होते हैं । चौदह रत्नों के चौदह हजार देवता रक्षक थे। वैदिक साहित्य में भी चौदह रत्नों के नाम प्राप्त होते हैं।
१ (क) त्रिषष्टि १/४
(ख) ठाणांग सूत्र, ठाणा ७ (ग) समवायांग सूत्र, समवाय १४
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