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उत्तम पुरुषों की कथाएँ १२५ संक्षेप में भगवान महावीर का तपःकर्म इस प्रकार रहाएक छः मासी ता
नौ चातुर्मासिक एक पांच दिन न्यून छः मासी दो त्रिमासिक दो सार्ध द्विमासिक एक महाभद्र प्रतिमा (चार दिन) छह द्विमासिक एक सर्वतोभद्र प्रतिमा (दस दिन) दो सार्धमासिक दो सौ उनतीस छट्ठभक्त बारह मासिक अर्थात् एक- बारह अष्टभक्त एक मास का तप (१२ मासखमण किये) बहत्तर पाक्षिक तीन सौ उनपचास दिन पारणे के एक भद्र प्रतिमा (दो दिन) एक दिन दीक्षा का।
आचारांग सूत्र के अनुसार भगवान् महावीर ने दशमभक्त आदि तपस्यायें भी की थीं।
कुल मिलाकर भगवान् महावीर ने अपने साधक जीवन के ४५१५ दिनों में से केवल ३४६ दिन आहार ग्रहण किया तथा ४१६६ दिन निर्जल तपश्चरण किया।
आचारांग सूत्र में भगवान् महावीर की विहार-चर्या का सजीव निरूपण है । भगवान् महावीर की तप के साथ ध्यान-साधना अनुस्यूत थी। भगवान् एक-एक प्रहर तक तिरछी भीत पर आँखें गड़ाकर ध्यान करते थे। "तिरिय भिति चक्खमासज्ज अंतसो झाति" यहाँ पर जो 'तिरियभित्ति' शब्द आया है, वह चिन्तनीय है । आचार्य अभयदेव ने भगवतो मे 'तिर्यग. भित्ति, का अर्थ प्राकार, वरण्डिका आदि की भींत अथवा पर्वतखण्ड किया
१ (क) आवश्यकनियुक्ति ४०६-४१६
(ख) विशेषावश्यकभाष्य १९६१ से १९६८ (ग) आव. हरिभद्रीयावृत्ति २२७-२२८ (घ) आवश्यक मल. वृत्ति २६८-२६६ (ङ) महावीर चरियं (गुणचन्द्र) ७/२५० (च) त्रिषष्टि० १०/४/६५२-६५६. २ छ?ण एगया भुजे अदुवा अमेण दसमेण । दुवालसमेण एगया भुजे पेहमाणे समाहि अपडिन्ने ।
-आचारांग १६/४/७
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