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१२२ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
इस स्वप्न का फल होगा - मैं अष्टाङ्गिक मार्ग का निरूपण करूंगा । तीसरे स्वप्न में उन्होंने देखा श्वेत कीट, जिसका सिरोभाग काला है, वह कीट मेरे घुटने तक रेंग रहा है । इसका अर्थ है श्वेतवस्त्रधारी गृहस्थों का शरणागत होना । बुद्ध ने चतुर्थ स्वप्न में देखा - रंग-बिरंगे चार पक्षी चार दिशाओं से आ रहे हैं और वे पक्षी चरणों में गिर रहे हैं, गिरते ही वे श्वेत हो जाते हैं । इस स्वप्न का तात्पर्य हैं - चारों वर्ण वाले लोग मेरे पास दीक्षित होंगे तथा वे निर्वाण को प्राप्त करेंगे । पाँचवें स्वप्न में उन्होंने देखा - वे एक गोमय पर्वत पर चल रहे हैं, उस पर्वत पर वे न तो फिसल रहे हैं और न ही गिर रहे हैं। इस स्वप्न का फल यह होगा कि मैं भौतिक सुख-सुविधाओं के होने पर भी अनासक्त रहूँगा ।
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भगवान् महावीर ने साधना काल में दस स्वप्न देखे तो बुद्ध ने पाँच स्वप्न देखे । भगवती सूत्र आदि में यह स्पष्ट नहीं है कि वे स्वप्न साधना काल के कौन से वर्ष में देखे ? कुछ लेखकों ने केवलज्ञान के पहले भगवान् महावीर ने दस स्वप्न देखे, यह उल्लेख किया है । आवश्यक नियुक्ति में भगवान् महावीर ने वे स्वप्न प्रथम वर्षावास के सोलहवें दिन देखें, ऐसा स्पष्ट संकेत है | 1 चण्डकौशिक को प्रतिबोध देने की घटना भी आचारांग तथा कल्पसूत्र आदि में नहीं है । आवश्यकचूर्णि महावीर चरियं-नेमीचन्द गुणचन्द्र, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आदि में, चण्डकौशिक को महावीर के द्वारा प्रतिबुद्ध किया गया, यह वर्णन है । विनयपिटक महावग्ग में बुद्ध के द्वारा चण्डनाग विजय का उल्लेख है । दोनों घटनाओं में बहुत कुछ समानता है । तथागत बुद्ध एक बार काश्यपजटिल के आश्रम में पहुँचे और उन्होंने कहा - काश्यप ! मैं तुम्हारी अग्निशाला में निवास करना चाहता हूँ । काश्यप उरुवेल ने सनम्र निवेदन किया- भगवन् ! मुझे कोई आपत्ति नहीं है, किंतु वहाँ पर अत्यन्त चण्ड, दिव्य शक्तिसम्पन्न आशीविष नागराज रहता है, जो आपको कहीं कष्ट न दे ! तथागत बुद्ध ने उत्तर मे कहा- वह नाग मुझे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देगा । बहुत बार कहने
१ आवश्यकनियुक्ति, पृष्ठ २६६.
२ आवश्यकचूर्ण, पृष्ठ २७८.
३ महावीर चरियं - नेमीचन्द्र ६६३ - गुणचन्द्र ५ / १४९
४ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र १०/३/२२५-२२८ ५ विनयपिटक महावग्ग, महाखंधक !
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