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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
पर लाकर रखे तथा जृम्भक देवों ने भी रत्न आदि की वृष्टि की, इसलिए भगवान का नाम 'वर्धमान' हआ, ऐसा उल्लेख नहीं है। पर आचारांग,1 महावीर चरियं चउपन्नमहापुरिस चरियं, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि के वर्णन से यह स्पष्ट है, कि निरन्तर धन-धान्य की अभिवद्धि होने से उनका नाम 'वर्धमान' रखा गया। वे किसी भी प्रकार के भय उत्पन्न होने पर भी विचलित नहीं हुए। इसलिए उनका दूसरा नाम 'महावीर' हआ। आचारांग, कल्पसूत्र, आवश्यक नियुक्ति, महावीर चरियं, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र आदि में भी इसका समर्थन है ।
वर्धमान्, महावीर, सन्मति, काश्यप, समण, ज्ञातपुत्र, विदेह, वैशालिक आदि विविध नाम अनेक ग्रन्थों में प्राप्त हैं ।10
भगवान् महावीर के माता पिता पापित्य श्रमणोपासक थे। जीवन की सांध्य वेला में संलेखना सहित आयु पूर्ण कर वे देव बने । आचा
१. चूलिका २/१५/१२-१३. २. (क) महावीर चरियं, गुणचन्द्र, प्र० ४, पृष्ठ ११४-१२४ ।
(ख) महावीर चरियं ७७०, पृष्ठ ३४, नेमिचन्द्र । ३. चउत्पन्न० पृष्ठ २७१. ४. त्रिषष्टि० १०/२/६८-६६. ५. भीमं भयभेरवं उरालं अचेलयं परिसहं सहइ त्ति कटु, देवेहिं से णामं कयं 'समणे भगवं महावीरे'।
-आयारो० आयार० २-१५-१६. ६. अयले भयभेरवाणं परीसहोवसग्गाणं खंतिखए पडिमाणं पाल ए धीयं अरतिरति
सहे दविए वीरियसम्पन्ने देवेहिं से णामं कयं 'समणे भगवं महावीरे' ! ७. (क) घोरं परीसहचमु अधियासित्ता महावीरो। -आवश्यकनियुक्ति ४२०
(ख) विशेषावश्यक भाष्य १९७२ (ग) आ० हरिभद्रीय० ५३७ ८. महावीर चरियं ४/१२५ ६. महोपसर्गेरप्येष न कप्यं इति वज्रिणा । महावीर इत्यं परं नाम चक्रे जगत्पतेः ।।
-त्रिषष्टि० १०/२/१०० १०, भगवान महावीर : एक अनुशीलन-ले० देवेन्द्रमुनि "शास्त्री",
पृष्ठ २३८-२५८०
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