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उत्तम पुरुषों की कथाए ११६ किन्तु अन्य आचार्यों ने नहीं। पं० सुखलाल जी सिंघवी ने भागवत् में आये हुए श्रीकृष्ण के जीवन के उस प्रसंग के साथ तुलना की है कि श्रीकृष्ण ने इन्द्र के द्वारा किये गये उपद्रवों से रक्षण करने के लिए योजन प्रमाण गोवर्धन पर्वत को सात दिन तक ऊपर उठाये रखा। किन्तु जन्मते हुए महावीर ने अंगूठे से मेरुपर्वत को कंपा दिया ।।
बौद्ध परम्परा के मज्झिमनिकाय ग्रन्थ में वर्णन है-भिक्ष मौद्गल्यायन ने वैजयन्त प्रासाद को अंगुष्ठ-स्पर्श से प्रकम्पित कर इन्द्र को प्रभावित किया। इस तरह मेरु-कम्पन, गोवर्द्धन-धारण एवं प्रासाद-कम्पन की घटनायें उस युग में अपने अपने आराध्य पुरुषों के सामर्थ्य, पराक्रम और ऐश्वर्य की प्रतीक बन गई थीं। राजा सिद्धार्थ ने पुत्र का जन्मोत्सव मनाया । डा० हार्नेल, डा० जेकोबी, ने अपने लेखों में सिद्धार्थ को राजा न मानकर एक प्रतिष्ठित उमराव व सरदार माना है। उनका यह मानना आगम-सम्मत नहीं है । आचारांग एवं कल्पसूत्र आदि में 'सिद्धत्थे खत्तिए' शब्द का प्रयोग हुआ है, लगता है जिसके कारण उनको यह भ्रम पैदा हुआ हो। क्षत्रिय का अर्थ सामान्य क्षत्रिय ही नहीं, अपितु राजा भी है । अभिधान चिन्तामणि में कहा है-क्षत्रिय, क्षत्र आदि शब्दों का प्रयोग राजा के लिये भी होता है। प्रवचनसारोद्धार में 'महसेणे य खत्तिए शब्द आया है । वहाँ टीकाकार ने क्षत्रिय का अर्थ राजा किया है।
आवश्यकनियुक्ति, विशेषावश्यकभाष्य आदि में वर्णन है-- भगवान् महावीर का जन्म होने पर देवों ने स्वर्ण, रत्न आदि सिद्धार्थ राजा के घर
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१. भागवत, दशमस्कन्ध, अ० ४३, श्लोक २६-२७ २. चार तीर्थंकर पं० सुखलाल जी, पृष्ठ ६०. ३. मज्झिमनिकाय, चूलतण्हासंखयसुत्त । ४. 'महावीर तीर्थंकरनी जन्मभूमि' लेख -जैन साहित्य संशोधक, खण्ड १, अंक
४, पृष्ठ २१६. ५. 'जैन सूत्रोनी प्रस्तावना का अनुवाद'-जैन साहित्य संशोधक, खण्ड १, ___अंक ४, पृष्ठ ७१. ६. क्षत्रं तु क्षत्रियो राजा, राजन्यो बाहुसंभवः ।
-अभिधान चिन्तामणि, काण्ड ३, श्लोक ५२७. ७. (क) प्रवचनसारोद्धार सटीक पत्र ८४. - (ख) चन्द्रप्रभस्य महासेनः क्षत्रियो राजा ।
-प्रवचनसारोद्धार, सटीक पत्र ८४.
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