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उत्तम पुरुषों की कथाएँ
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तथागत बुद्ध के चाचा भगवान् पार्श्व के अनुयायी श्रावक थे । प्राचीन काल से भारत और शाक्य प्रदेश में अत्यन्त मधुर सम्बन्ध रहे हैं । श्वेताम्बर
और दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ भगवान पार्श्व का परिनिर्वाण सम्मेतशिखर मानते हैं, जो पर्वत आज भी बिहार राज्य के हजारीबाग जिले में स्थित है और 'पार्श्वगिरी' के नाम से विश्रुत है। उसके निकटस्थ रेलवे स्टेशन का नाम भी पारसनाथ है । भगवान् महावीर
श्रमण भगवान् महावीर चौबीसवें तीर्थंकर हैं। उनका व्यक्तित्व अत्यन्त क्रान्तिकारी था। उन्होंने तत्कालोन सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक मूलभूत समस्याओं का मौलिक समाधान किया था। जिस समय ईरान में जरथोस्त्र, फिलिस्तीन में जारेमिया, तथा ईर्जाकेल, चीन में कन्फ्यूशियस एवं लाओत्से, यूनान में पाइथागोरस, अफलातून और सुकरात आदि विविध चिन्तक अपना चिन्तन प्रस्तुत कर रहे थे, उसो समय भारत में पूरण कश्यप, मंखली गौशालक, अजित केसकम्बली, प्रकुद्ध कात्यायन, संजयविरट्ठीपुत्र, तथागत बुद्ध, आदि विचारक तात्कालिक समस्या का समाधान कर रहे थे।
उस समय वैदिक संस्कृति में उच्छृखलता, अमानवीयता एवं धनघोर अहंकार के मद में क्रूरता प्रदीप्त थो। यज्ञ में मूक पशु-पक्षी और निरपराधी नर नारी तथा शिशु समुदाय को समर्पित किया जा रहा था। "यज्ञार्थम् पशवः स्रष्टा स्वयमेव स्वयंभुवा" तथा "वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति'इस प्रकार के अनुचित नारे लगाकर यज्ञ आदि अनुष्ठानों का औचित्य प्रगट किया जा रहा था। जातिवाद एवं वर्गवाद को सीमाएँ अत्यन्त संकीर्ण हो गई थीं। शूद्र वर्ग को पतित माना जाता था। वेदाध्ययन का उसे अधिकार नहीं था। यदि वेद के शब्द उनके कर्ण कुहरों में गिर जाते तो उनके कानों में शोशा भर दिया जाता तया वेद के शब्दोच्चार होने पर जिह्वा छेदन कर देते थे। इस प्रकार जन-जोवन के साथ खिलवाड़ की जा रही थी। यज्ञ-हिंसा के साथ जातिगत हिंसा भो कम नहीं थी।
१. अंगुत्तरनिकाय की अट्ठ कथा; भाग २, पृ० ५५६. २. भगवान् पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्ययन-लेखक देवेन्द्रमुनि ‘शास्त्री'
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