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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
ष्टिशलाका पुरुष चरित्र, सिरि पासनाह चरिउ, तिलोयपण्णत्ति ग्रन्थों में भगवान् पार्श्व के दस गणधर लिखे हैं । उनके नामों में भी अन्तर है। उदाहरण के रूप में, द्वितीय गणधर का नाम कल्पसूत्र में 'आर्यघोष' है, तो समवायांग में 'शुभघोष' है। कल्पसूत्र में प्रथम गणधर का नाम 'शुभ' है तो श्री पासनाह चरियं में 'शुभदत्त' है। गणधरों की संख्या के सम्बन्ध में उपाध्याय विनयविजयजी ने यह समाधान दिया है कि भगवान पार्श्वनाथ के दो गणधर अल्प आयुष्य वाले थे, इसलिए समवायांग
और कल्पसूत्र में आठ गणधरों का उल्लेख हुआ है । अन्य ग्रन्थों में दस गणधरों का उल्लेख हुआ है।
आवश्यकनियुक्ति के अनुसार भगवान् पार्श्व मुख्य रूप से अंग, बंग तथा मगध में विचरे थे। पर भारत के दक्षिण-पश्चिम अंचल को भी उन्होंने स्पर्श किया था । भगवान् पावं ने कर्नाटक से सौराष्ट्र तक एवं अनार्य देशों में भी विहार किया था। सकल कीति की दृष्टि से भगवान् पार्श्व का विहार-क्षेत्र इस प्रकार रहा- कुरु,कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्ड, मालव, अंग, बंग, कलिंग, पांचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्णाटक, कोंकण, मे बाड़, लाट, द्राविड़, काश्मीर, कच्छ, शाक, पल्लव, वत्स, आभीर आदि देशों में उन्होंने विहार किया था। अन्य आचार्यों ने भी इसी प्रकार भगवान पार्श्वनाथ के विहार का वर्णन किया है। भगवान पार्श्व शाक्य द्वीप में पधारे थे। शाक्य भूमि नेपाल की उपत्यका में थी। वहां पर पाश्र्वनाथ के अत्यधिक अनुयायी गण रहते थे।
१. त्रिषष्टि ० ६/३. २. (क) सिरि पासणाह चरियं ४/२०२.
(ख) पार्श्व चरित्र ५/४३७-४३८. ३. तिलोय पण्णत्ति - ४. द्वौ अल्पायुन्कत्वादिकारणान्नोवतौ इति टिप्पणके व्याख्यातम् ।
-कल्पसूत्र, सुबोधिका टीका, पृ० ३०१. ५. आवश्यक नियुक्ति, गाथा २५६ ६. सकलकीर्ति- पार्श्वनाथ चरित्र २३/१८-१६, १५/७६-८५. ७. (क) पार्श्वनाथ चरित, सर्ग १५/७६-८५.
(ख) त्रिषष्टि०-६/४ पृ० २६३-३०८ (गुजराती अनुवाद) (ग) सिरिपासणाहचरियं सर्ग ८
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