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________________ उत्तम पुरुषों की कथाएँ ११५ पद्मकीर्ति के अनुसार भगवान् पार्श्व को जब कमठ उपसर्ग दे रहा था, तब उनको केवलज्ञान हुआ। किन्तु श्वेताम्बर ग्रन्थों के अनुसार कमठ के उपसर्ग के कुछ दिनों बाद भगवान् पार्श्व को केवलज्ञान हुआ। समवायांग और कल्पसूत्र के अनुसार पार्श्व के प्रथम शिष्य 'दिन्न' [आर्यदत्त हुए तथा प्रथम शिष्या 'पुष्प वूला' हुई । प्रथम श्रावक सुनन्द तथा प्रथम श्राविका सुनन्दा हुई । दिगम्बर परम्परा के अनुसार प्रथम शिष्य का नाम 'स्वयंभू' है और प्रथम शिष्या का नाम 'सुलोका' या 'सुलो. चना' है । पद्मकीर्ति के अनुसार प्रथम शिष्या का नाम प्रभावती है । स्थानांग, समवायांग' और कल्पसूत्र के अनुसार भगवान् पार्श्व के आठ गण और आठ गणधर थे। उनके नाम इस प्रकार हैं१. शुभ २. शुभघोष ३. वसिष्ठ ४. ब्रह्मचारी ५. सोम ६. श्रीधर ७. वीरभद्र और ८. यश । आवश्यकनियुक्ति' आवश्यक10 मलयगिरो वृत्ति, त्रिष १. पासणाह चरिउ १४/३०/१३२. २. भगवान् पार्श्व : एक समीक्षात्मक अध्ययन, पृ० १०४-१०५ __ -ले० देवेन्द्रमुनि ३. (क) समवायांग १५७, गा० ३६-४१. (ख) पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स अज्ज दिण्णपामोक्खाओ। - कल्पसूत्र १५७ (ग) पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्स पुफ्फचूलापामोक्खाओसुनन्दपा. मोक्खाणं ......"सुनन्दापामोक्खाणं..! -कल्पसूत्र १५७. (घ) समवायांग १५७/४२.४. ४. (क) तिलोयपण्णत्ति ४/९६६, पृष्ठ २७१. प्र० भाग (ख) पासणाह चरिउ १५/१२/१३८. (ग) तिलोयपण्णत्ति ४/११/८०. ५. तहो दुहिय पहावइ वर-कुमारि । अवयरिय जुवाणहं णाहु मारि । सा अज्जिय संघहो वर-प्रहाण" -~-पासणाह चरिउ, १५/१२/१३८. ६. स्थानांग, ६१७. ७. समवायांग ८/८. ८. कल्पसूत्र १५६, पृष्ठ २२३. ६. आवश्यकनियुक्ति, गा० २६०. १०. आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, पत्र २०६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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