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________________ ११४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा भयंकर यातनायें दीं, किन्तु वे मेरु की तरह अडोल रहे । तब खिसियाकर भयंकर गर्जना करते हुए अपार जल की वृष्टि की की । नासाग्र तक पानी आ जाने पर भी भ० पार्श्व ध्यान से विचलित नहीं हुए । ' धरणेन्द्र ने अपने अवधिज्ञान से मेघमाली के उपसर्ग को देखा । सात फनों का छत्र बनाकर मेघमाली देव के उपसर्ग का निवारण किया । भक्ति भावना से विभोर होकर धरणेन्द्र ने भगवान् की स्तुति की 1 पर समतायोगी भगवान् पार्श्व न धरणेन्द्र पर तुष्ट हुए और न कमठ के जीव पर रुष्ट ही हुए । यही कारण है कि आचार्य हेमचन्द्र ने लिखा है'"कमठे धरणेन्द्र च स्वोचिते कर्म कुर्वति । प्रभोस्तुल्यमनोवृत्तिः पार्श्वनाथ: श्रियेऽस्तु वः ॥ धरणेन्द्र के भय से भयभीत बना हुआ मेघमाली प्रभु के चरणों में गिरकर अपने अपराधों की क्षमायाचना करने लगा । 5 6 9 चउपन्नमहापुरिस चरियं, सिरिपासनाह चरियं त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, पद्मकीर्तिकृत पासनाह चरिउ प्रभृति श्वेताम्बर ग्रन्थों में विघ्नकर्ता का नाम मेघमालिन् दिया है । उत्तरपुराण, पुष्पदन्त कृत महापुराण और रइधू के पासचरिय में विघ्न उपस्थित करने वाले का नाम 'शम्बर' दिया है । वादिराज ने उसका नाम 'भूतानन्द' लिखा है । आचार्य सिद्धसेन 11 दिवाकर ने लिखा है - हे स्वामिन् ! उस शठ कमठ ने जो धूलि आप पर फेंकी, वह धूलि आपकी छाया पर भी आघात नहीं पहुँचा सकी 112 १. सिरि पासनाह चरियं - देव०, ३ / १६२, २. सिरि पासनाह चरियं ३ / १९३. ३. ( क ) चउपन्नमहापुस्सि चरियं २६७ (ख) सिरिपासनाहचरियं ३ / १६३ ४. त्रिषष्टि० पर्व ६, सर्ग १, श्लोक, २५. ५. चउप्पन्न० २६६. ६. ताव पुव्वत्तकढो, मेहकुमारत्तणेण वट्टतो ! ७. त्रिषष्टि० ६ / ३. ८. तं पेक्खेवि धवलुज्जलु थक्कउ अविचलु मेहमल्लिभडु कुद्धउ | ६. उत्तरपुराण ७३/१३६-१३७. १०. श्री पार्श्वनाथ चरित्र १०/८८. ११ - १२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र ३१. Jain Education International - सिरिपास० ३ / १६१ - पासणाह चरिउ १४/५/११६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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