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________________ उत्तम पुरुषों की कथाएँ ११३ भी यह वर्णन है । मेरी दृष्टि से लेखकों ने भूल से ऐसा किया है क्योंकि पद्मावती को यक्षिणी और धरणेन्द्र को यक्ष लिखा गया है। यक्ष और यक्षिणी यह बाणव्यन्तर देवों का ही एक प्रकार है। जबकि धरणेन्द्र भवनपति के इन्द्र हैं । इसलिए पद्मावती यक्षिणी उनकी देवी किस प्रकार हो सकती है ? वाणव्यन्तर की देवी भदनपतियों की देवी नहीं बन सकती, अतः प्रस्तुत कथन आगमसम्मत नहीं है । आगमज्ञों के लिए चिन्तनीय है। ___ चउपन्नमहापुरिसचरियं में लिखा है कि एक बार पार्श्वकुमार वावीसवें तीर्थंकर अरिष्टनेमि के भीति-चित्रों का अवलोकन कर रहे थे। अवलोकन करते-करते उनके अन्तर्मानस में वैराग्य भावना जागृत हुई। उत्तरपराण में लिखा है कि भगवान् पार्श्व जब गृहस्थाश्रम में थे, तब अयोध्या का दूत वाराणसी आया, उस दूत ने भगवान् ऋषभदेव का वर्णन सुनाया, जिससे उन्हें वैराग्य उत्पन्न हुआ। आचार्य देवभद्र सूरि ने पासनाह चरिउं में शीलांक का ही अनुकरण किया है । पद्मकीर्ति के अभिमतानुसार कमठ और नाग की घटना उनके वैराग्य का निमित्त बनी। आचार्य हेमचन्द्र और वादिराज सरि ने उनके वैराग्योत्पत्ति का कोई कारण नहीं दिया है। आधुनिक श्वेताम्बर साहित्य में शीलांक का विशेष रूप से अनुसरण हुआ है। समवायांग और कल्पसूत्र में कमठ कृत उपसर्गों की बिल्कुल चर्चा नहीं है । पर चउपन्नमहापुरिसचरियं,' श्री पासनाह चरियं,10 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र11 में यह घटना आई है। कमठ तापस मरकर मेघमाली देव बना । विभंगज्ञान से भगवान् पार्श्व को ध्यान मुद्रा में देखकर उसका अहंकार जागृत हो उठा। इसने मुझे पूर्वभव में पराजित किया था। अब मैं इसे पराजित कर अपनी शक्ति प्रदर्शित करूं । उसने सर्प, बिच्छू आदि के विविध रूप बनाकर भगवान् को १. स्थानांग-समवागि, पृष्ठ ४५५. २. स्थानांग-समवायांग, पृष्ठ ४८१. ३. चउपन्नमहापुरिस चरियं, पृष्ठ २६३. ४. उत्तरपुराण ७३/१२०-१२४. ५. पासनाह चरिउ १६२. ६. पासनाह चरिउ १३/१२. ७. त्रिषष्टि० ६/३/२३१. ८. पार्श्वनाथ चरित्र ११वाँ सर्ग, श्लोक १-५५. ६. चउपन्नमहापुरिस चरियं २६६. १०. श्री पासनाह चरियं ३/१६१. ११. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र ६/३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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