SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 128
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा १. आला, २. शक्रा, ३. सतेरा, ४. सौदामिनी, ५ इन्द्रा, ६. घनविद्यु ता, ये छह अग्रमहिषियाँ बताई गई हैं, उनमें पद्मावती का नामोल्लेख नहीं है । जिस प्रकार इन्द्रों के नाम शाश्वत हैं, उनमें परिवर्तन नहीं होता वैसे ही अग्रमहिषियों के नाम भी शाश्वत हैं । ज्ञातासूत्र के अनुसार वर्तमान में धरणेन्द्र की जो अग्रमहिषियाँ हैं, वे भगवान् पार्श्वनाथ के शासन में बनी हैं । अग्रमहिषियों की स्थिति अर्धपल्योपम से भी अधिक बताई है ।। इससे यह स्पष्ट है कि धरणेन्द्र के पूर्व जो अग्रमहिषियाँ थीं, वे सत्रहवें तीर्थकर कुन्थुनाथ के समय बनी होंगी, इसलिए वे भगवान् पार्श्व के गृहस्थाश्रम तक जीवित थीं। आचार्य हेमचन्द्र और भावदेव ने भगवान् पार्श्व के शासनदेव का नाम 'पार्श्व यक्ष' दिया है तथा शासनदेवी का नाम 'पद्मावती यक्षिणी' दिया है । कहीं-कहीं पर धरणेन्द्र और पार्श्व ये दोनों एकार्थक रूप में व्यवहृत हुए हैं । लाइफ एण्ड स्टोरीज ऑफ पार्श्वनाथ तथा हॉर्ट ऑफ जैनिज्म' में भी धरणेन्द्र और पद्मावती को शासनदेव और शासनदेवी माना है । वादिराज सूरि विरचित पार्श्वनाथ चरित तथा बृहद् पद्मावती स्त्रोत' में १. णवरं धरणस्स अग्गमहिसित्ताए उववाओ सातिरेगअद्धपलिओवमठिई। -ज्ञातासूत्र, हि० श्रु तस्कंध, २/३/पृ० ६०६ २. समर्थ समाधान, भाग १ला, पृष्ठ ६५. ३. (क) त्रिषष्टि-६/३/पृष्ठ ४८६.४८७. गुजराती। (ख) अभिधान चिन्तामणि ४३. ४. पार्श्वचरित, सर्ग ७, श्लोक ८२७. ५. श्री पार्श्व चरित सर्ग ६, श्लोक १६०-१९४. ६. लाइफ एण्ड स्टोरीज ओफ पार्श्वनाथ, फुटनोट, पृ० ११८, १६७. ७. हार्ट ऑफ जैनिज्म, पृ०३१३. ८. पद्मावती जिनमतस्थितिमुन्नयती, किं नैव तत्सदसि शासनदेवतासोत । तस्याः पतिस्तु गुणसग्रहदक्षचेता, यक्षो वभूव जिनशासनरक्षणज्ञः ॥ -श्री पार्श्वनाथ चरितम् १२/४२, पृष्ठ १९३. ६. पातालाधिपति प्रिया प्रणयिनी चिन्तामणि प्राणिनां। श्रीमत्पार्श्वजिनेश शासन-सुरी पद्मावती देवता ॥ - बृहद् पद्मावती स्तोत्र २२. (प्रकाशक-माणिकचन्द दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला समिति, हीराबाग, बम्बई) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy