SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तम पुरुषों की कथाएँ १११ कमठ-विवाद का प्रसंग सर्वप्रथम हमें चउपन्न महापुरिस चरियं और उत्तरपुराण से प्राप्त होता है । दोनों में अन्तर यही है कि आचार्य शीलांक ने तो अग्नि में जलते काष्ठ में नाग को पीड़ित होते बताया है, जबकि गुण भद्र ने काष्ठ को चीरने पर नाग-नागिन को पीड़ित होते बताया है। आचार्य हेमचन्द्र ने तथा भावदेव सूरि ने शीलांकाचार्य का अनुसरण किया है। पद्मकीर्ति ने पासनाहचरिउ में केवल एक नाग को ही जलते बताया है, जबकि वादिराज सूरि ने पार्श्वनाथ चरित्र में नागयुग्म का धरणेन्द्रपद्मावती के रूप में उल्लेख किया है। दोनों ही परम्पराओं के अर्वाचीन ग्रन्थों में नाग-नागिन और धरणेन्द्र पद्मावती का उल्लेख हुआ है । कितने ही लेखकों ने यह लिखा है कि नागिन मरकर धरणेन्द्र की स्त्री पद्मावती देवी बनी ।' पर स्थानांग, भगवती, ज्ञातासूत्र10 में धरणेन्द्र नागराज की १. च उपन्नम हापुरिस चरियं, पृष्ठ २६१ २. उत्तरपुराण ७३/१०१-१०३. ३. त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्र, अंग्रेजी अनुवाद, खण्ड ५, पृ० ३६१-३९२. ४. पार्श्वनाथ चरित्र, सर्ग छठा . ५. पासनाह चरिउ ६. परिणमदनलामपाकजात-श्रम भरितं भुजंग प्रियासमेतम् । जिनवररविरुदयन् स्वाघाम्बा सकलमपास्य तताप तापसस्य ।।८४।। परिगतदहनं व्युदस्य देह भुजगपति भवेन बभूव देवः । समजनि भुजगी च तस्य देवी-वदलत्कोमल नीलनीरजाक्षी ॥८६।। पद्मावती च धरणश्च कृतोपकारं तत्काल जातमवधिं प्रणिधायबुद्ध्वा । आनम्र मौलिकचिरच्छ विचचिंताघ्रि मानर्चतुः सुरतरुप्रसवैजिनेन्द्रम् ॥८७॥ -श्री पार्श्वनाथ चरितं, सर्ग १०२, श्लोक ८४, ८६, ८७. ७. उत्तरपुराण ७३/११८-११६, पृष्ठ ४३६-४३७. ८. धरणस्म णं नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो छ अग्गमहिसीओ पण्णत्ताओ ___तंजहा-आला, सक्का, सतेरा, सोयामणा, इन्दा, घणविज्जया। --स्थानांग सूत्र ३५, घासीलाल जी, म ० द्वारा सम्पादित, भा० ४, पृ० ३७१. ६. धरणस्स णं भंते ! नागकुमारिंदस्स नागकुमाररन्नो कति अग्गमहिसीओ पत्नत्ताओ? अज्जो ! छ अग्गमहिसीओ पन्नत्ताओ, तं जहा-१. इला २. सुक्का ३. सतारा ४. सोदामिणी ५. इन्दा ६. घण विज्जुआ । -भगवती, शतक १०, उद्देशक ५, खड ३ पृष्ठ १०१. १०. ज्ञातासूत्र, द्वितीय श्रु तस्कंध, तृतीय वर्ग, पृ० ६०६. प्रकाशक-तिलोक रत्न स्था० परीक्षा बोर्ड, पाथर्डी. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy