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जैन कथाओं की विकास यात्रा
स्पष्ट उल्लेख किया है। उत्तरपुराण, पासनाहचरिउं प्रभुति ग्रन्थों में इन्द्र ने बालक का नाम 'पार्श्व' रखा, ऐसा उल्लेख है । दिगम्बर ग्रन्थों में सर्प के देखने का उल्लेख नहीं है और न उसका नाम के साथ सम्बन्ध स्थापित किया है।
पार्श्वनाथ के गृहस्थ जीवन की दो मुख्य घटनाएँ हैं । प्रथम घटना है-कशस्थलपूर का युद्ध और प्रभावती के साथ विवाह; और दूसरी घटना है-कमठ के साथ विवाद और नाग उद्धार ।
कुशस्थलपुर युद्ध के लिए जाने का वर्णन न आगम ग्रन्थों में है और न चउपन्न महापूरिस चरियं में ही है। सर्वप्रथम पद्मकीर्ति रचित पासनाहचरिउ में तथा देवभद्र सूरि रचित पासनाहचरियं में यह वर्णन मिलता है। पर दोनों ग्रन्थों में श्वेताम्बर-दिगम्बर परम्परा-भेद होने से कथानक में ही मतभेद होना स्वाभाविक है । आचार्य शीलांक ने कुशस्थलपुर जाने का वर्णन नहीं किया है, किन्तु उन्होंने प्रभावती के साथ पार्श्व का विवाह होना बताया है । दिगम्बर आचार्य पद्मकीर्ति के अनुसार प्रभावती के साथ पार्श्व का विवाह सम्बन्ध स्वीकृत होता है। पर उसी समय कुशस्थलपुर में ही कमठ और नाग की घटना घटित होने से पार्श्व प्रभावती से विवाह न कर वे विरक्त हो जाते हैं। जबकि देवभद्रसूरि ने विवाह होना माना है। पार्श्वनाथ के जितने भी अन्य चरित्र ग्रन्थ हैं, उन सभी में कमठ और नाग की घटना वाराणसी में मानी है। केवल पद्मकीति ने ही वह कुशस्थलपुर में मानी है।
१. जन्माभिषेक कल्याण पूजा नित्यनन्तरम् पार्वाभिधानं कृत्वास्य पितृभ्यां तं समर्पयन् !
-उत्तरपुराण ७३/६२, पृ० ४३५. २. पासनाहचरिउ, पद्मकीर्ति ८/२३/७०. ३. एत्थावसरम्मि य सयलगुणगणालंकियसविसे सीकयर, वसोहागाइसयस्स भयवओ पसेणइणा अच्चन्तसोहन्गसालिणी पहावती णाम णिययधूया पणा मिया।
-चउपन्नमहापुरिसचरियं, पृ० २६१, ४. जोवसियइ बहु-गुण कहिउ लग्गु । णरणाहहो तं णिय-चिति लग्गु॥
गड वियसिय-वयणु खणेण तित्थु । अच्छइ धवलहरि कुमारु जित्थु ।। करि लेयि गरिदे वुत्त देउ । महु कण्ण परणि करि वयणु एउ ॥ पडिवण्णु कुमारे एउ होउ ।।
-पासणाहचरिउ, १३/६. ५. पासणाहचरिउ, १३/९-१३,
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