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उत्तम पुरुषों की कथाएँ १०५ श्याम वर्ण, अचेल और पद्मासन में बैठे हुए थे। वामन ने उनका नाम 'नेमिनाथ' रखा। ये नेमिनाथ कलिकाल के सभी घोर पापों को नष्ट करने वाले हैं। इनके दर्शन और चरण-स्पर्श से करोड़ों यज्ञ का फल प्राप्त होता है। प्रभासपूराण में भी अरिष्टनेमि की स्तुति की गई है। महाभारत में भी उनकी स्तुति के स्वर प्रस्फुटित हुए हैं।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डा० रायचौधरी ने 'वैष्णव धर्म के प्राचीन इतिहास' में भगवान् अरिष्टनेमि को श्रीकृष्ण का चचेरा भाई लिखा है।
अरिष्टनेमि के सम्बन्ध में कर्नल टॉड ने लिखा है-मुझे ऐसा ज्ञात होता है, अतीत काल में चार बुद्ध या मेधावी महापुरुष हुए हैं, उनमें प्रथम आदिनाथ और द्वितीय नेमिनाथ थे । नेमिनाथ ही स्केन्डीनेविया निवासिवों के प्रथम ऑडिन तथा चीनियों के प्रथम 'फो' देवता थे।
डा० नगेन्द्रनाथ वसु, डा० फुहर, प्रोफेसर वॉरनेट, मि० कर्वा, डा० हरिदत्त, डा० प्राणनाथ विद्यालंकार आदि अनेक आधुनिक विद्वानों ने भी भगवान् अरिष्टनेमि को ऐतिहासिक एवं प्रभावशाली महापुरुष माना है ।
उनके कल्याण, गर्भ में आने पर माता ने जो चौदह महास्वप्न देखे, उनका उल्लेख है । जन्म, प्रव्रज्या, केवलज्ञान, गणधर, अन्तकृत भूमि और कुमारावस्था में निर्वाण-प्राप्ति का उल्लेख हुआ है।
'वसुदेव हिण्डी', 'चउपन्नमहापुरिस चरियं', त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, नेमिनाह चरिउं, भव-भावना, उपदेशमाला प्रकरण, हरिवंश पुराण, उत्तर पुराण, नेमि निर्वाण काव्य, अरिष्टनेमि चरित्र, नेमिनाथ चरित्र, आदि लगभग सौ से भी अधिक रचनायें प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, गुजराती, राजस्थानी आदि भाषा में उपलब्ध हैं। जिन रचनाओं में भगवान् अरिष्टनेमि के जीवन के पावन-प्रसंग उकित हैं। विशेष जिज्ञासु मेरे द्वारा लिखित 'भगवान् अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण : एक अनुशीलन' ग्रन्थ का अवलोकन करें।
१. प्रभास पुराण ४६-५०. २. महाभारत, अनुशासन पर्व, अध्याय १४६, श्लोक ५०-८२. ३. वैष्णव धर्म का प्राचीन इतिहास-डा० रायचौधरी ४. अन्नल्स ऑफ दी भण्डारकर रिसर्च इन्स्टीट्यूट-पत्रिका जिल्द २३. पृष्ठ
१२२. ५. 'भगवान् अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्री कृष्ण : एक अनुशीलन'
-ले० देवेन्द्र मुनि शास्त्री प्रका० तारक गुरु जैन ग्रन्थालय, उदयपुर (राज.)
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