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१०४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा अहिंसा, सत्यवचन रूप थी।1 धर्मानन्द कौशाम्बी ने 'आंगिरस' ऋषि को भगवान् अरिष्टनेभि का ही अपर नाम माना है ।
ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद' में भगवान् अरिष्टनेमि को 'तार्क्ष्य अरिष्टनेमि' लिखा है। “स्वस्ति नः इन्द्रो वृद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषाः विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्तायोऽरिष्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिदधातु" । वेदों में जो अरिष्टनेमि शब्द प्रयोग हुआ है, वह भगवान् अरिष्टनेमि ने लिए है । महाभारत में भी ‘तार्थ्य' शब्द का प्रयोग हुआ है। वह भी भगवान् अरिष्टनेमि का ही दूसरा नाम होना चाहिए।'
यजुर्वेद में लिखा है- 'अध्यात्मयज्ञ को प्रगट करने वाले, संसार के भव्य जीवों को यथार्थ उपदेश देने वाले और जिनके उपदेश से आत्मा पवित्र बनती है, उन सर्वज्ञ नेमिनाथ के लिए आहुति समर्पित करता हूँ।
डा० राधाकृष्णन ने लिखा है-यजुर्वेद में ऋषभदेव, अजितनाथ और अरिष्टनेमि इन तीन तीर्थंकरों के नाम हैं ।
. 'स्कन्दपुराण'10 में एक प्रसंग है-वामन ने तप किया । तप के दिव्य प्रभाव से प्रभावित होकर शिव ने वामन को दर्शन दिये । शिव उस समय
१. अतः यत् तपोदानमार्जवमहिंसासत्यवचनमितिता अस्य दक्षिणा।
-छान्दोग्य उपनिषद् ३/१७/४. १. भारतीय संस्कृति और अहिंसा, पृ० ५७. ३. (क) त्वम् षु वाजिनं सहावान तरुतारं रथानाम् ।
अरिष्टनेमि पृतनाजमाशु स्वस्तये ताय मिहा हुवेम ॥ (ख) ऋग्वेद १/१/१६
___-ऋग्वेद १०/१२/१७८/१. ४. यजुर्वेद २५/१६: ५. सामवेद ३/९. ६. ऋग्वेद १/१/१६ ७. एवमुक्तस्तदा तायः सर्वशास्त्र विदांवरः । विबुध्य संपदं चाग्र यां सद्वाक्यमिदमबवीत् ॥
--महाभारत, शान्ति पर्व, २८८/४. ८. वाजसनेयि-माध्यंदिनशुक्ल यजुर्वेद, अध्याय ६, मंत्र २५, सात वलेकर संस्करण
(विक्रम १९८४) E. The Yajurveda mentions the names of three TirthankarasRishabha, Ajitnath and Arisi tanemi.
-- Indian Philosophy, Vol. I, p. 287. १०. स्कन्दपुराण, प्रभासखण्ड
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