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________________ उत्तम पुरुषों की कथाएँ १०३ वह विभिन्न कथाएँ सुनाकर राजा के हृदय को परिवर्तित करती है। रयणचूडरायचरिय' में और कथासरित्सागर में इसी प्रकार के विचारों को व्यक्त करने वाली कथाएँ आई हैं। किन्तु उन सभी कथाओं से मल्लि भगवती की जो कथा है अधिक प्रभावशाली है। इसमें प्रतीक के द्वारा जिस सत्य को उजागर किया है वह अद्भुत और दर्शनीय है । स्वर्ण प्रतिमा का जो रूप है, वह नारी सौन्दर्य को व्यक्त कर रहा है। प्रतिमा के ऊपर छेद पर ढका हुआ कमल बाहरी सौन्दर्य के आकर्षण को व्यक्त करता है। और प्रतिमा के अन्दर आहार की सड़ांध नारी शरीर के भीतर रही हुई अशुचिता को व्यक्त करती है। साथ ही कमल के नीचे रहने वाले कीचड़ को भी व्यक्त करती है । जिस भयंकर दुर्गन्ध से सभी राजा मह फेर लेते हैं और उनका आकर्षण समाप्त हो जाता है। संयम ग्रहण करने वाले साधक की आसक्ति समाप्त हो जाती है और वह सदा के लिए भोगों से विमुक्त हो जाता है। भगवान् अरिष्टनेमि : भगवान् ऋषभदेव और मल्ली भगवती ये दोनों तीर्थंकर प्राग ऐतिहासिक काल में हुए हैं । आधुनिक इतिहासकार भगवान् अरिष्टनेमि को ऐतिहासिक पुरुष मानते हैं। क्योंकि कर्मयोगी श्रीकृष्ण को इतिहासकार इतिहास के एक जाज्वल्यमान नक्षत्र मानते हैं। उसी युग में अरिष्टनेमि का भी प्रादुर्भाव हुआ था। इसलिए उन्हें ऐतिहासिक पुरुप मानने में संकोच की आवश्यकता नहीं है। ऋग्वेद में अरिष्टने मि शब्द चार बार प्रयुक्त हुआ है। "स्वस्ति नस्ताक्ष्यो अरिष्टनेमिः' [ऋग्वेद १/१४/८६/६] यहाँ पर 'अरिष्टनेमि' शब्द भगवान् अरिष्टनेमि के लिए प्रयुक्त हुआ है । कितने ही मूर्धन्य मनीषीगणों का यह मन्तव्य है कि 'छान्दोग्योपनिषद्' में भगवान् अरिष्टनेमि का नाम 'घोर आंगिरस' के नाम से आया है । उन्होंने श्रीकृष्ण को आत्मयज्ञ की शिक्षा प्रदान की। उसकी दक्षिणा दान, तपश्चर्या, ऋजुभाव, १. रयणचूडरायचरियं, सं० श्री विजयकुमुद सूरि, पृ० ५४ २. तीसे काणगपडिमाए, मत्थयाओतं पउमं अवणेइ। -धम्मकहाणुओगो, मूल पृ० ४३ ३. (क) ऋग्वेद १/१४/८६/६. (ख) ऋग्वेद १/२४/१८०/१० (ग) ऋग्वेद ३४५३/११. (घ) ऋग्वेद १०/१२/१७८/१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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