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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
सन्नद्ध हो जाते। सभी राजाओं की यही इच्छा रहती कि विश्व में जो भी सर्वश्रेष्ठ वस्तु है, उसके अधिपति हम ही हैं। यही कारण है कि मल्ली भगवती के सौन्दर्य-रस का पान करने के लिए छहों राजा रूपी भँवरे एक साथ मँडराये और अधिकार की भाषा में सभी ने अपना-अपना अधिकार व्यक्त किया।
प्रस्तुत कथानक के अध्ययन से यह भी ज्ञात होता है कि उस युग में आज की तरह लड़की माता-पिता के लिए एक समस्या ही थी । यदि लडकी अत्यन्त रूपवान होती तो रूप-लुब्धक व्यक्ति उसे पाने के लिए अपनी जान दाँव पर लगा देते और जब एक से अधिक व्यक्ति उसे प्राप्त करने के लिए आतुर हो जाते तो माता-पिता के लिए गम्भीर समस्या बन जाती थी। यदि वह लड़की सुरूपा नहीं होती तो भी विवाह की समस्या ही बनी रहती। इस तरह दोनों ही प्रकार से लड़की की समस्या रहती थी।
इस प्रकार प्रस्तुत कथानक में सांस्कृतिक, धार्मिक सामग्री रही
प्रस्तुत कथानक के द्वारा इस बात का भी प्रतिपादन किया गया है कि पुरुष जो स्त्री के रूप पर अनुरक्त हो उसे तर्क दृष्टि से प्रतिबोध दिया है। इस प्रकार प्रतिबोध देने की परम्परा प्राचीन कथा साहित्य म अनेक स्थलों पर देखा जा सकती है 11 बौद्ध साहित्य में भिक्षुणी शुभा की कथा भी इसी प्रकार की है। जिसकी चर्चा पृष्ठ ६८ पर की जा चुकी है, इस घटना से यह ध्वनित होता है कि उस युग में नारी का आत्मबल इतना प्रबल रूप से जागृत था कि वह एरष की कामना-वासना के प्रवाह को अपने रूप-सौन्दर्य का बलिदान करके भी मोड़ दे सकती थी और उत्सर्ग करने में कभी पीछे नहीं हती। उत्तराध्ययन में राजीमती ने रथनेमि को वमन के उदाहरण से प्रतिबोधित किया । आख्यानकमणिकोश में रोहिणी की कथा है । रोहिणी, जिस पर एक राजा मुग्ध हो गया था,
१. देखें, पेन्जर; 'द ओसन आफ स्टोरी' भूमिका । २. जैन, शिवचरणलाल, आचार्य बुद्धघोष और उनकी अट्ठकथाएँ, दिल्ली,
१६६६ । ३. उत्तराध्ययन सूत्र, अ. २२, गा० ४१-५२ ४. आख्यानकमणिकोश, कथानक संख्या १५, पृ० ६१
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