________________
उत्तम पुरुषों की कथाएँ १०१ मुक्ताएँ प्रभृति अनेक वस्तुएँ भारत में आती थों ।। यह भी ज्ञात होता है कि भारत में सोमाली-लैण्ड, वंश प्रदेश, यूनान , सिंहल, अरब, हटगना, फारस प्रभृति देशों से अनेक दास-दासियाँ अन्तःपुर में महारानियों की सेवा के लिए आती थीं। उनके लालन-पालन में बढ़ती हुई सन्तान सहज रूप से वहाँ की भाषाओं से परिचित हो जाते थे। उन्हें भाषाओं के अध्ययन के लिए विशेष श्रम करने की आवश्यकता नहीं होती थी। धाय-माताओं की चूट के साथ ही भाषा भी उन्हें हृदयंगम हो जाती ।
आज के युग की तरह प्राचीन युग में भी विदेशों से जो बहुमूल्य माल आता था, उस माल का (राजस्व) कर न चुकाना पड़े, इसलिए व्यापारीगण राजमार्ग का परित्याग कर बीहड़-पथ पर भी चल पड़ते थे
और जब वे पकड़े जाते तो राजागण उन्हें कठोर दण्ड देते थे। इससे यह स्पष्ट है कि प्रत्येक युग में सभी ईमानदार व्यक्ति पैदा नहीं होते। लोभ की वृत्ति से मानव अनैतिकता की ओर बढ़ता है ।
जैनश्रमण की आचार संहिता अत्यधिक कठिन थी इसलिये वह समुद्र यात्रा नहीं करते थे, पर जैन सार्थवाह और व्यापारीगण व्यापार के क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति करना चाहते थे, इसलिये वे समुद्र-यात्रा किया करते थे। एक बार नहीं, किन्तु अनेक बार वे माल को इधर से उधर आयात और निर्यात करते रहते थे। आगम व व्याख्या साहित्य और स्वतन्त्र कथा-साहित्य में सैकड़ों व्यक्तियों के समुद्र-यात्रा के प्रसंग प्राप्त हैं। उन्हें समुद्री मार्गों का भी विशेष परिज्ञान था। यह सत्य है कि आज के युग की तरह उस युग में वाहन इतने सबल नहीं थे। पवन की प्रतिकूलता से वाहन क्षत-विक्षत भी हो जाते थे, तथापि व्यापारी हिम्मत नहीं हारते थे। __ प्रस्तुत कथानक में छह राजाओं का परिचय भी दिया गया है । मल्ली भगवती के युग में राज्य-व्यवस्था कैसी थी ? इसका भी इससे पता चलता है। राजाओं के पास चतुरंगिणी सेनायें होती थीं। वे स्वाभिमानी होते थे। उनके अहंकार को जरा सो ठेस पहुँ वने पर वे युद्ध के लिए भी
१. उत्तराध्ययन टीका, पृ० ६४. २. अन्तगडदसाओ, बारनेट का अनुवाद, पृ० २६ से २६. ३. उत्तराध्ययन बृहद्वृत्ति, पत्र २५२.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org