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________________ १४ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा श्रमण के रूप में, कहीं केशी के रूप में भगवान् ऋषभदेव की स्तुति करते हैं। श्रीमद्भागवत में तो ऋषभदेव का बड़ा ही विस्तार से निरूपण है, लगता है कि जैन परम्परा के ग्रन्थ को ही हम पढ़ रहे हैं । उनके मातापिता के नाम, सुपुत्रों का उल्लेख, उनकी ज्ञान साधना, उपदेश, धार्मिकसामाजिक नीतियों का प्रवर्तन, और भरत के अनासक्त योग का चित्रण हुआ है । श्रीमद्भागवत में ही नहीं, अपितु लिङ्गपुराण, शिवपुराण', आग्नेयपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, विष्णुपुराण', कूर्मपुराण, नारदपुराण, वाराहपुराण19, स्कन्दपुराण11, प्रभृति पुराणों में ऋषभदेव का केवल नामोल्लेख ही नहीं हुआ है, किन्तु कहीं-कहीं उनके जीवन-प्रसंग भी उटकित हैं। बौद्ध ग्रन्थों में ऋषभदेव का उल्लेख जितना विस्तार के साथ होना चाहिए, उतना नहीं हो पाया । 'धम्मपद' में ऋषभ और महावीर का नाम एक साथ आया है, उसमें ऋषभ को सर्वश्रेष्ठ धीर अभिहित किया।12 धर्मकीर्ति ने 'न्याय बिन्दु' ग्रन्थ में सर्वज्ञ का दृष्टान्त देते हुए ऋषभदेव और भगवान् महावीर का उल्लेख किया है ।13 जो सर्वज्ञ अथवा आप्त हैं, वे ज्योतिज्ञानादिक के उपदेष्टा होते हैं। पाश्चात्य और पौर्वात्य सभी ने ऋषभदेव को आदिपुरुष माना है १. (क) पद्मपुराण ३/२८८. (ख) हरिवंश पुराण ६/२०४. (ग) ऋग्वेद १०/१३६/१. २. श्रीमद्भागवत १/३/१३; २/७/१०, ५/३/२०, ५/४/२०; ५/४/५; ५/४/८, ५/४/६-१३; ५/५/१६; ५/५/१६; ५/५/२८; ५/१४/४२-४४; ५/१५/१. ३. लिंगपुराण, ४८/१६-२३. ४. शिवपुराण, ५२/८५. ५. आग्नेयपुराण, १०/११-१२. ६. ब्रह्माण्डपुराण पूर्व, १४/५३. ७. विष्ण पुराण, द्वितीयांश, अ० १/२६-२७. ८. कूर्मपुराण, ४१/३७. ३८. ६. नारदपुराण, पूर्वखण्ड, अ० ४८. १०. वाराहपुराण, अ० ७४. ११. स्कन्दपुराण, अ०६७. १२. उसभं पवरं वीरं महेसि विजिताविनं । अनेजं नहातकं बुद्ध तमहं व मि ब्राह्मणं ॥ -धम्मपद ४२२. १३. यः सर्वज्ञ आप्तो वा स ज्योतिर्ज्ञानादिकमुपदिष्टवान् तद्यथा ऋषभव. धमानादिरिति । -न्यायबिन्दु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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