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________________ उत्तम पुरुषों की कथाएँ ६३ जाना है, जो सूर्यवत् तेजस्वी तथा अज्ञान आदि अन्धकार से बहुत दूर है, उसी का परिज्ञान कर मृत्यु से पार हुआ जा सकता है । मुक्ति के लिए इसके सिवाय अन्य कोई मार्ग नहीं । 1 अथर्ववेद के ऋषि ने मानवों को यह प्रेरणा दी कि वे ऋषभदेव का आह्वान करें । हे सहचर बन्धुओ ! तुम आत्मीय श्रद्धा द्वारा उसके आत्मबल और तेज को धारण करो 12 क्योंकि वे प्रेम के राजा हैं, उन्होंने उस संघ की स्थापना की है, जिसमें पशु भी मानव के सदृश माने जाते हैं तथा उनको कोई भी नहीं मार सकता । वैदिक ऋषियों ने विविध प्रतीकों के द्वारा भी ऋषभदेव की स्तुति की है । कहीं वे जाज्वल्यमान अग्नि के रूप में, कहीं परमेश्वर के रूप में कहीं रुद्र के रूप में, कहीं शिव के रूप में, कहीं हिरण्यगर्भ' के रूप में, कहीं ब्रह्मा' के रूप में, कहीं विष्णु के रूप में, कहीं वातरसना 10 5 १. वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसः पुरस्तात् । तमेव विदित्वातिमृत्युमेति नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय ॥ २. अहोमुचं वृषभं यज्ञियानां विराजन्तं प्रथमध्वराणाम् । अपां नपातमश्विना हु वे धिय, इन्द्रियेण इन्द्रिय दत्तमोज || " - अथर्ववेद, कारिका १६ / ४२ / ८ ३. अथर्ववेद ६/४/३, ६/४/७; ६/४/१८. ४. अथर्ववेद ९ / ४ /७. ५. ( क ) ऋग्वेद १० / १३६., २/३३/१५. (ख) यजुर्वेद तैत्तिरीय संहिता १२ / ८ /६, वाजसनेयी ३ / ५७ /६३. ६. प्रभासपुराण ४६. ७. ( क ) ऋग्वेद १० / १२१/१. (ख) तैत्तिरीयारण्यक भाष्य - सायणाचार्य, ५/५/१/२. ( ग ) महाभारत शान्तिपर्व ३४९. 1 (घ) महापुराण १२ / ५. ८. ऋषभदेव : एक परिशीलन, द्वि० संस्करण, पृ० ४६. ६. सहस्रनाम ब्रह्मशतकम् श्लोक १००-१०२. १०. ( क ) ऋग्वेद १०/१३६/२. Jain Education International (ख) तैत्तिरियारण्यक २/७/१. पृ० १३७ (ग) बृहदारण्यकोपनिषद ४ / ३२२. (घ) एन्शियेन्ट इण्डिया एज डिस्त्राइन्ड बाय मैगस्थनीज एण्ड एरियन, कलकत्ता, १९१६, पृ० ६७-६८. (ब) ट्रान्सलेशन आव द फग्मेन्टस आव द इण्डिया आव मैगस्थनीज, बान १८४६, पु० १७५. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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