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२ जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
ऋषभदेव और शिव
उस दिन श्रमणों ने
।
इसलिए वह रात्रि
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति', कल्पसूत्र, त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र के अनुसार ऋषभदेव की निर्वाण तिथि माघ कृष्णा त्रयोदशी है और तिलोयपण्णत्त एवं महापुराण के अनुसार माघ कृष्णा चतुर्दशी है । मूर्धन्य मनीषियों का यह मानना है कि भगवान् की स्मृति में उपवास रखा और रात भर धर्म- जागरणा करते रहे 'शिवरात्रि' के रूप में प्रसिद्ध हुई । ईशान संहिता में उल्लेख है - माघ कृष्णा चतुर्दशी की महानिशा में कोटि सूर्य प्रभोपम भगवान् आदिदेव शिवगति प्राप्त हो जाने से शिव - इस लिङ्ग से प्रकट हुए, जो निर्वाण के पूर्व आदिदेव कहे जाते थे, वे अब शिवपद प्राप्त हो जाने से 'शिव' कहलाने लगे । ऋषभदेव का महत्त्व केवल जैन परम्परा में ही नहीं रहा है, अपितु ब्राह्मण परम्परा में भी वे उपास्य देव रहे हैं । डा० राधाकृष्णन, डा० जिमर, प्रो० विरूपाक्ष, वॉडियर प्रभृति अनेक विद्वानों ने इस सत्य तथ्य को स्वीकार किया है कि वेदों में भी भगवान् ऋषभदेव का उल्लेख हुआ है। वैदिक ऋषि भक्ति की भावना से तल्लीन होकर महाप्रभु ऋषभ की स्तुति करते हुए कहते हैं - हे आत्मद्रष्टा प्रभो ! परमसुख प्राप्त करने के लिए हम • आपकी शरण में आना चाहते हैं ।" ऋग्वेद में अनेक स्थलों पर ऋषभदेव - का उल्लेख हुआ है । " यजुर्वेद में भी कहा है- मैंने उस महापुरुष को
१. जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचम पक्खे |
माह बहुले तस्स णं माहबहुलस्स तेरसी पक्खेणं ।। - जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति ४८ / ९१ २. कल्पसूत्र १६६/५६
३. त्रिषष्टि० १ / ६
४. 'माघस्स किहि चोदसि पुव्वण्हे णियय - जम्मणक्खत्ते अट्टावयम्मि उसहो अजुदे समं गओज्जोभि ।
-तिलोयपण्णत्ति
५. महापुराण २७/३.
ईशान संहिता
६. माघे कृष्ण चतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि । शिवलिंग तयोद्भुतः कोटि सूर्यसमप्रभ । तत्काल व्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिव्रते तिथिः ॥ ७. मखस्य ते तीवषस्य प्रजुतिमियाभि वाचमृताय भूषन् । इन्द्र क्षितीमामास मानुषीणां विशां देवी नामुत पूर्वयाया ||
- ऋग्वेद २ / ३४/२.
८. ऋग्वेद- १६/१६६/१.
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