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________________ १० जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में भगवान् ऋषभदेव ने दीक्षा के पश्चात् कब प्रथम आहार ग्रहण किया, इसका उल्लेख नहीं है। समवायांग में “संवच्छरेण भिक्खा लद्धा उसहेण लोगनाहेण" इस प्रकार उल्लेख है। इससे यह स्पष्ट है कि भगवान ऋषभदेव को दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् एक वर्ष से भी अधिक समय व्यतीत होने पर भिक्षा मिली। किस तिथि को उन्हें भिक्षा प्राप्त हुई ? इसका उल्लेख वसुदेव हिण्डी' और हरिवंश पुराण में नहीं हुआ है। वहाँ केवल संवत्सर का ही उल्लेख है। खरतरगच्छ बृहत्गुर्वावली', त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र तथा महाकवि पुष्पदन्त के महापुराण में अक्षय तृतीया के दिन ऋषभदेव का पारणा हुआ, यह स्पष्ट उल्लेख है । श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार ऋषभदेव ने बेले का तप धारण किया था, और दिगम्बर परम्परा के अनुसार उन्होंने छह मास का तप धारण किया था। पर लोग आहार-दान देने की विधि से अनभिज्ञ थे। अतः स्वतः आचीर्ण तप उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया और एक वर्ष से अधिक अवधि व्यतीत होने पर उनका पारणा हआ। श्रेयांसकुमार ने ईक्ष रस उन्हें प्रदान किया। इसका सूचन वाचस्पत्याभिधान के निम्न श्लोकों से भी होता है "वैशाखमासि राजेन्द्र, शुक्ल पक्ष तृतीयका । अक्षया सा तिथि प्रोक्ता, कृत्तिकारोहिणीयुता ॥ तस्यां दानादिकं सर्वमक्षयं समुदाहृतम् ।' १. समवायांग -सूत्र १५७ २. "भय पियामहो निराहारो परमधिति-बल-सायरो सयंभुसागरोइव थिमियो अणाउलो संवच्छरं विहरइ, पत्तो य हत्थिणाउर.........."ततो परमहरिसियो पडिलाहेइ सामि खोयरसेणं । -वसुदेव हिण्डी ३. हरिवंश पुराण, सर्ग , श्लोक १८०-१६१. ४. श्री युगादिदेव पारणकप वित्रितायां वैशाख शुक्लपक्ष तृतीयायाँ स्वपदे महाविस्तरेण स्थापिताः। -खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावली सिंघी जैनशास्त्र शिक्षापीठ, भारतीय विद्याभवन, बम्बई] ५. राधशुक्ल तृतीयायाँ, दानमासीत्तदक्षयम् । पर्वाक्षयतृतीयेति, ततोऽद्यापि प्रवर्तते । -त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, १/३/३०१. ६. सेयंसहु घणएण णिउंजिय, उक्कहिं उडमाला इव पंजिय । पूरियसंवच्छर उववासे, अक्खयदाणु मणि परमेसे ॥ -महापुराण, सन्धि ६, पृ० १४८-१४६ . .. .. " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003190
Book TitleJain Katha Sahitya ki Vikas Yatra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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