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उत्तम पुरुषों की कथाएँ ८६ अन्यान्य ग्रन्थों में 'नीलांजना' नर्तकी नृत्य करते-करते मृत्यु को प्राप्त हुई, उसे देखकर ऋषभदेव प्रतिबुद्ध हुए, ऐसा उल्लेख है।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में अभिनिष्क्रमण के पूर्व ऋभषदेव ने वार्षिक दान दिया, ऐसा उल्लेख नहीं है, पर आवश्यकनिर्यक्ति1 और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र में उनके वार्षिक दान का उल्लेख है ।
ऋषभदेव ने चार मुष्टिक लुंचन किया, यह उल्लेख जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में है । जबकि अन्य तीर्थंकरों के वर्णन में पंचमुष्टि लुंचने का उल्लेख हुआ है । टीकाकार ने विषय को स्पष्ट करते हुए लिखा है--जिस समय भगवान् लोच कर रहे थे, उस समय उनके स्वर्ण सदृश केश राशि को देखकर इन्द्र ने प्रार्थना की--एक मुष्टि केश इसी तरह रहने दें। भगवान् ने इन्द्र की प्रार्थना से उसी प्रकार केशों को रहने दिया । केश रहने से वे 'केशी' या 'केशरिया जी' के नाम से विश्र त हुए। पद्मपुराण', हरिवंश पुराण में ऋषभदेव की जटाओं का उल्लेख है। ऋग्वेद में ऋषभ की स्तुति 'केशी' के रूप में की गई है । वहाँ पर कहा है-केशी अग्नि, जल, स्वर्ग तथा पृथ्वी को धारण करता है । केशी विश्व के समस्त तत्त्वों का दर्शन कराता है और केशी ही प्रकाशमान ज्ञान ज्योति कहलाता है।
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में चार हजार उग्र, भोग, राजन्य और क्षत्रिय वंश के व्यक्तियों के साथ ऋषभदेव की दीक्षा का उल्लेख है ।' यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि भगवन् ऋषभ ने उनको दीक्षा नहीं दी थी पर उन्होंने भगवान् का अनुसरण कर स्वयं ही लुंचन आदि क्रियायें की थीं।
१. आवश्यकनियुक्ति, २३६. २. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र, १/३/२३. ३. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार २ सूत्र ३०. ४. वातोद्धता जटास्तस्य रेजुराकुलमूर्तयः ।
- पद्मपुराण ३/२८८. ५. स प्रलम्बजटाभारभ्राजिष्णुः ।
- हरिवंशपुराण, ६/२०४. ६. केश्यग्नि विष केशी विर्भात रोदसी।
केशी विश्व स्वई शे केशीदं ज्योतिरुच्यते ॥ ऋग्वेद १०/१३६/१. ७. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति वक्षस्कार २, सूत्र ३०. ८. चउरो साहस्सीओ, लोयं काऊण अप्पणा चेव । जं एरा जहा काही तं तह अम्हेवि काहामो ॥
--आवश्यक नियक्ति गा० ३३७
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