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जैन कथा साहित्य की विकास यात्रा
को व्यवस्थित रूप देने के लिए की । ब्राह्मण वर्ण की स्थापना सम्राट भरत ने की थी, ऐसा स्पष्ट उल्लेख आवश्यकनियुक्ति, आवश्यकचूणि, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र आदि ग्रन्थों में है। ऋग्वेद संहिता में वर्गों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विस्तार से चर्चा है, वहाँ ब्राह्मण को मुख, क्षत्रिय को बाहु, वैश्य को उरु और शूद्र को पैर बताया है। यह लाक्षणिक वर्णन समाज रूप विराट शरीर के रूप में चित्रित किया गया है। श्रीमद्भागवत आदि में भी इस सम्बन्ध में चर्चा है । वैदिक साहित्य में ऋषभदेव को अनेक स्थलों पर ब्रह्मा भी कहा है। ऋषभदेव : अध्यात्म साधना का प्रथम चरण
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति में ऋषभदेव की दीक्षा का उल्लेख है, पर वैराग्य किस कारण से उबुद्ध हुआ, इसकी चर्चा नहीं है । जबकि आचार्य हेमचन्द्र ने और शीलाचार्य ने लिखा है-वसन्त ऋतु में नागरिकगण विविध प्रकार की क्रीड़ाएँ कर रहे थे, क्रीड़ाएँ देखकर वे चिन्तन करने लगे-क्या इससे भी अधिक सुख कहीं पर है ? चिन्तन करते हुए अवधिज्ञान से पूर्वभव में अनुत्तर विमान में जो सुखोपभोग अनुभव किया था, उसके सामने यह कुछ भी नहीं है ? वह लम्बे समय का सुखोपभोग आज स्वप्नवत् हो गया है, अतः वे संयम के पथ पर बढ़ गये । दिगम्बर परम्परा के ग्रन्थ हरिवंश पुराण और
१. महापुराण, १८३/१६/३६२. २. (क) आवश्यक नियुक्ति पृ० २३५/१
(ख) आवश्यक चूणि २१२.२१४
(ग) त्रिषप्टि० १/६ ३. ब्राह्मणोऽस्य मुखमासीद् बाहु राजन्यः कृतः । उरु तदस्य यद श्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत ।
-~-ऋग्वेद संहिता १०/६०, ११-१२ ४. विप्रक्षत्रियविटशूद्रा, मुखबाहरुपादजा : । वैराजात् पुरुषाज्जाताय आत्माचार लक्षणः ।।
-भागवत ११/१७/१३ द्वि भा० पृ० ८०६ ५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार २, सूत्र ३०. ६. त्रिषष्टिशलाका० १/२/९८५-१०३३. ७. चउपन्न महापुरिस चरियं ८. सोऽथ नीलाञ्जसां दृष्ट्वा नृत्यन्तीमिन्द्रनर्तकाम् ।
बोधस्याभिनिबोधस्य, निर्विवेदोपयोगतः ॥ -हरिवंशपुराण ६/२७
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