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कला-कौशल ऋषभदेव ने अपने बड़े पुत्र भरत को बहत्तर कलाओं का और लघु पुत्र बाहुबली को प्राणी-लक्षणों का ज्ञान कराया । आचार्य जिनसेन ने आदिपुराण में लिखा है कि ऋषभदेव ने अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को अर्थशास्त्र, संग्रह प्रकरण और नृत्यशास्त्र की शिक्षा दी। वृषभसेन को गान्धर्व विद्या की, अनन्तविजय को चित्रकला, वास्तुकला और आयुर्वेद की शिक्षा दी । बाहुबली को काम नीति, स्त्री-पुरुष लक्षण, धनुर्वेद, अश्वलक्षण, गजलक्षण, रत्न परीक्षा एवं तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी थी। उन्होंने अपनी पुत्री ब्राह्मी को दक्षिण हस्त से अठारह लिपियों का अध्ययत कराया तथा सुन्दरी को वाम हस्त से गणित विद्या का परिज्ञान कराया । व्यवहार-साधन हेतु मान, (माप),उन्मान (तोला-माशा आदि), अवमान (गज, फीट, इंच आदि), प्रतिमान (छटांक सेर-मन आदि) सिखाये । ब्राह्मी लिपि जो आज प्रचलित है, उसका आविष्कार ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी के द्वारा हुआ। विश्व में आज जितनी भी लिपियाँ प्रचलित हैं, उनका मूल आधार ब्राह्मी लिपि है । आज जो गणित शास्त्र (Mathematics) है, वह सुन्दरी के गणित शास्त्र का ही विकसित रूप है। इस तरह ऋषभदेव ने प्रजा के हित के लिए, अभ्युदय के लिए पुरुषों को बहत्तर कलाओं, स्त्रियों को चौंसठ कलाओं और सौ प्रकार के शिल्पों का परिज्ञान कराया । संक्षेप में कहें तो असि, मषि और कृषि की व्यवस्था की।
वर्ण व्यवस्था ऋषभदेव ने क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन तीनों वर्गों की स्थापना की । यह स्थापना ऊँचता और नीचता की दृष्टि से नहीं, किन्तु आजीविका १. समवायांग सूत्र, समवाय ७४. २. भरहस्स रूवकम्म, नराइ लक्खणमहोइयं बलिणो ।
-आवश्यकनियुक्ति ११३. ३. आदिपुराण, १६/११८-१२५. ४. (क) ऋषभदेव : एक परिशीलन, परिशिष्ट विभाग चौथा, ले० देवेन्द्रमुनि
(ख) आवश्यकनियुक्ति, २१२. ५. (क) ऋषभदेव : एक परिशीलन, द्वितीय संस्करण, पृ० १४६.
(ख) विशेषावश्यकभाष्यवृत्ति, १३२. ६. "माणुम्मा णवमाणपमाणंनणिमाई वत्थूणं" -आवश्यकनियुक्ति, २१३. ७. कल्पसूत्र, १६५/५७ पुण्य० सं०
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