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________________ सम्यश्रद्धा की दूसरी पांख : देव-गुरु-धर्म-श्रद्धान | ५६ कि आत्मा के पूर्ण विकास के लिए उपादेयरूप मोक्षतत्व तक पहुँचने के लिए किस आदर्श को सामने रखकर, किस का मार्गदर्शन लेकर, किस मार्ग पर चलना चाहिए ? यद्यपि प्राथमिक भूमिका के अध्यात्मयात्री को अपने आत्मविकास के प्रति रुचि तो होती है, परन्तु उसकी आत्मा उस समय अविकसित दशा में होती है, वह किसी आदर्श का आलम्बन खोजती है, जिसके सहारे से वह अध्यात्म गिरि के सर्वोच्च शिखर तक पहुँच सके । फिर प्राथमिक भूमिका के मुमुक्षु की यह अपेक्षा भी रहती है कि मैं असंयम से संयम की ओर, असत्य (मिथ्यात्व) से सत्य (सम्यक्त्व) की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, अबोधि से बोधि की ओर, उन्मार्ग से सन्मार्ग की ओर, अब्रह्म से ब्रह्म की ओर गति-प्रगति करू परन्तु उस समय गहरा अनुभव न होने से उसे किसी न किसी साधना की पराकाष्ठा पर पहुँचे हुए वीतराग सर्वज्ञ-आप्त पुरुष पर, वर्तमान में साधना-पथ पर अविश्रान्त विशुद्ध गति करने वाले मार्गदर्शक पर एवं उनके द्वारा बताए गये शुद्ध धर्म पर श्रद्धा रखकर चलने की आवश्यकता होती है। क्योंकि उस समय उसे न तो अपने आदर्श का पता होता है, न ही मार्गदर्शक का और न ही (सद्धर्म) मार्ग का। इसीलिए प्रबुद्ध तत्व मनोषियों ने प्राथमिक अध्यात्म यात्री के लिए तीन तत्वों पर श्रद्धा रखचर चलना भी सम्यश्रद्धा के लिए आवश्यक बताया-देव पर, गुरु पर और शुद्ध धर्म पर । तात्पर्य यह है देव तत्व प्राथमिक अध्यात्म यात्री के लिए साधना के आदर्श को उपस्थित करता है, गुरुतत्व साधना का यथार्थ पथ प्रदर्शन है, साथ ही अध्यात्म यात्री साधक को मार्ग से इधर-उधर भटक जाने से रोकता है, मार्ग में स्थिर करता है, अध्यात्म यात्रा में शिथिलता आने पर प्रोत्साहन देता है, प्रेरित करता है। और तीसरा धर्म तत्व आत्मा के विकास और शद्धि का यथार्थ सर्वज्ञ आप्त पुरुष प्रज्ञप्त मार्ग है। जैन सिद्धांत मर्मज्ञों ने यहाँ श्रद्धेय त्रिपुटी देव, गरु और धर्म शब्द से अभिव्यक्त की है। इसीलिए सम्यश्रद्धा के लिए प्राथमिक अध्यात्म यात्री को बताया गया कि अरिहंत देव पर, निर्ग्रन्थ गुरु पर और वीतराग-सर्वज्ञ आप्तप्ररूपित धर्म (तत्व या आगम) पर श्रद्धान करना अनिवार्य है। तीसरा समाधान यह है कि जिस प्रकार भौतिक विज्ञान टेक्नोलोजी आदि के क्षेत्र में प्राचीन वैज्ञानिकों या टेक्नेशियनों के अनुभव किये हुए अनुसंधानों के आधार पर चलना पड़ता है, अगर विज्ञान की प्राथमिक कक्षा का विद्यार्थी नये सिरे से उन अनुसन्धानों को प्रारम्भ करे तो उसकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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