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________________ ५२ | सद्धा परम दुल्लहा है । अतः जिनेश्वर द्वारा बताये गए जीव के स्वरूप और स्वभाव पर विचार करके, उस पर श्रद्धा निष्ठा रखे । प्रस्तुत सात तत्वों में जीव तत्व ही मुख्य है । जीव के अतिरिक्त जितने भी अन्य तत्व या पदार्थ हैं, वे सब एक या दूसरे प्रकार से जीव से ही सम्बन्धित हैं । दूसरे सब तत्व जीब (आत्मा) को केन्द्र में रखकर अपने-अपने स्वभाव के अनुसार कार्य करते हैं । जीव है तो आस्रव और संवर है जीव को लेकर ही बन्ध है, एवं निर्जरा की सत्ता है । जीव के साथ बार-बार संपर्क होने से, तथा जीव का विरोधी होने से अजीव भी जीव से संबन्धित है। मोक्ष भी जीव ( आत्मा ) की सर्वथा शुद्ध और पूर्ण विकास की अवस्था विशेष है । इसलिए जीव की प्रमुखता एवं श्र ेष्ठता को समझना भी जीव तत्व पर श्रद्धान है । इसीलिए एक महान् आचार्य ने 'जीव को उत्तम गुणो का धाम, सर्वद्रव्यों में उत्तम द्रव्य और समस्त तत्वों में श्रेष्ठ तत्व' कहा है । जीवतत्व पर श्रद्धान का रहस्य अतः जीवतत्त्व पर श्रद्धान का रहस्य यह है कि तत्वभूत सभी पदार्थों पर श्रद्धा तो की जाए, किन्तु उनके प्रति श्रद्धान की ओट में जीव (आत्मा) को ओझल न कर दिया जाए। जिन तत्व े से आत्मा का विकास होता हो, उन्हें अपनाया जाए और जिनसे आत्मा का ह्रास होता हो, उन तत्वों को त्याज्य समझा जाए । जीव जब स्व और पर का भेद-विज्ञान न करके, अपना स्व-स्वरूप भूलकर धन, मकान, परिवार आदि में या पचेन्द्रिय विषयों मे अथवा मनोऽनुकूल पदार्थों पर राग, मोह आदि और अमनोज्ञ पदार्थों के प्रति द्व ेष घृणा आदि करता है जड़ या सजीव इष्ट संयोग में सुख-शांति ढूंढ़ता है, तब वह अपने ( जीव के ) स्वरूप के प्रति श्रद्धान से हट जाता है और रागादि विकल्प करता हुआ वह (जीव ) अजीव, आस्रव और बन्ध के साथ अपना गाढ़सम्बन्ध जोड़ लेता है । सम्यक् श्रद्धावान् को चाहिए यह कि जीव और अजीव तथा स्वभाव और विभाव या परभाव का निष्ठापूर्वक भेद - विज्ञान करके अजीव, आस्रव एवं बन्ध के कारणों से सावधान रहे । तथा स्व-पर-भेदविज्ञान द्वारा रागद्वेषादि विकल्प उत्पन्न करने वाले शुभाशुभ कर्मों को आने से रोक दे और पूर्वकृत विक्रूपों से बद्ध कर्मों को काटता चले । यो करते-करते क्रमशः वह समस्त कर्मों और विकल्पों से पूर्णतः मुक्त होकर निर्बाध शांति प्राप्त करने का अभ्यास करे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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