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सम्यक्श्रद्धा की एक पांख : तत्वार्थश्रद्धान | ५१ :
इन्हीं सात [ पुण्य-पाप मिलाकर नो] तत्वों पर भावतः श्रद्धा और निष्ठा करने पर सम्यक् श्रद्धा कहलाएगी ।
जीवादि सात तत्वों का स्वरूप और श्रद्धा
जीवादि सात तत्वों पर श्रद्धा करने के लिए इनके स्वरूप का निश्चय करने की आवश्यकता है। जीव का लक्षण तत्वार्थ सूत्र में बताया गया है - ' उपयोगो लक्षणम्" । जीव का सर्व सामान्य लक्षण जो संसारी और सिद्ध दोनों प्रकार के जीवों में घटित होता है, वह है- उपयोग । उपयोग का अर्थ है - ज्ञान - दर्शनमय । दर्शन को निराकार उपयोग कहते हैं, और ज्ञान को साकार उपयोग । इन दोनों में सामान्य और विशेष ज्ञान का अन्तर है । निष्कर्ष यह है कि जो चेतनामय हो, वह जीव (आत्मा) है । इसी लक्षण को बृहद् द्रव्य संग्रह में स्पष्ट किया गया है
जीवो उवओगमओ, अमुत्ति कत्ता सदेह परिमाणो । भोत्ता संसारस्थो, सिद्धो सो विस्ससोड्ढगई ॥
अर्थात् - संसारस्थ जीव का लक्षण - जो जीता है, प्राण धारण करता है, ज्ञान दर्शनमय है, अमूर्तिक ( अरूपी ) है, अपने कर्मों का कर्त्ता और भोक्ता है, अपने अपने शरीर के परिमाण वाला ( बराबर ) है । जो सिद्ध ( मुक्त ) जीव है वह उपयोगमय (पूर्ण निर्मल केवलज्ञान केवलदर्शनमय ) है, अमूर्ति (इन्द्रियों से अगोचर ) तथा कर्त्ता (क्रिया रहित, अविचल ज्ञायक एक मात्र शुद्ध बुद्ध रूप, एवं स्व-स्वभाव का धारक ) है, और भोक्ता (शुद्ध द्रव्याथिकनय की दृष्टि से रागादि विकल्प रूप उपाधियों से रहित तथा अपनी आत्मा में उत्पन्न सुख रूपी अमृत का भोक्ता ) है । एवं निश्चयनय से लोकाकाश परिमित असंख्य स्वाभाविक शुद्ध प्रदेशों का धारक है । इसके अतिरिक्त वह मुक्त जीव शुद्ध निश्चयनय की दृष्टि से संसाररहित तथा नित्य आनन्द स्वभाव युक्त है। इसी प्रकार अनन्त ज्ञानादिमय होने से वह सिद्ध है, तथा केवलज्ञानादि अनन्त गुणों की प्राप्तिरूप मोक्ष में गमन करते समय ऊर्ध्वगमन करता है ।
जीव ही समस्त तत्वों में प्रधान व्यवहार और निश्चय दोनों दृष्टियों से जीव का यह लक्षण है । इस प्रकार जीव (शुद्ध आत्मा) समस्त ज्ञानादि गुणों और भावों का आधार
१. तत्त्वार्थ सूत्र अ. २
२. बृहद् द्रव्य संगह अधि. १ गा. २
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