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सुश्रद्धा के द्वार तक पहुँचने के लिए दस सुरुचियाँ | ३६
में, उसके जीवन और संस्कारों में कोई परिवर्तन नहीं होता, क्योंकि उसकी तत्त्वरुचि आत्मलक्ष्यी और सम्यक् श्रद्धामुखी नहीं है, वह सिर्फ संसारलक्ष्यी है । इसलिए नास्तिक आदि में पाई जाने वाली तत्त्वरुचि संसारलक्ष्यी है, वह मोक्षाभिमुख या सम्यक् श्रद्धा मुखी न होने से रागभावयुक्त है, वह सम्यग्दर्शन नहीं हो सकती । जो तत्वरुचि आत्मलक्ष्यी एवं सुश्रद्धाभिमुखी है, वह आत्मा का शुद्धपरिणाम है, वह रागभावयुक्त नहीं होती, उसी को सम्यग्दर्शन समझना चाहिए ।
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