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३६ | सद्धा परम दुल्लहा
का विशेष विश्लेषण करने में असमर्थ मानकर वीतराग सर्वंज्ञ देव ने पदार्थों का जैसा स्वरूप कहा है, वह वैसा ही है, अन्यथा नहीं, इस प्रकार दृढ़ श्रद्धापूर्वक वीतरागोक्त पदार्थों पर शंकादि दोष रहित यथार्थं श्रद्धान करना भी आज्ञा - सम्यक्त्व है ।
(२) मार्ग - सम्यक्त्व - - सम्यग्दर्शन- ज्ञान चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्षमार्ग है, रत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग ही वीतराग आचरित मोक्षमार्ग है, वही सत्य है, निःशंक है, उससे भिन्न मोक्षमार्ग सम्भव नहीं है । इस प्रकार रत्नत्रय रूप मोक्षमार्ग में दृढ़ श्रद्धा या रुचि करना मार्ग सम्यक्व या मार्गोद्भव सम्यक्त्व है ।
(३) उपदेश - सम्यक्त्व - तीर्थंकर, चत्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव आदि पुण्य पुरुषों के चरित, तीर्थंकरों के पंचकल्याणकों की महिमा, चक्रवर्ती के वैभव आदि को उपदेशरूप में सुनने से जो तत्व श्रद्धान होता है, उसे उपदेश सम्यक्त्व कहते हैं ।
(४) सूत्र—सम्यक्त्व—अचारांग आदि आचारशास्त्रों में कथित मुनियों एवं श्रावकों के आचार-विचार, चर्या, मुनियों का घोर परीषहविजय, समता, निस्पृहता, क्षमा, अहिंसा - सत्यादि धर्मों का वर्णन सुनने से जो सम्यक् श्रद्धा उत्पन्न होती है, उसे सूत्र - सभ्यवत्व कहते हैं ।
(५) बीज - सम्यक्त्व - कर्म और आत्मा के स्वरूप को पृथक्-पृथक् जान कर 'कर्म से आत्मा भिन्न है' यह और इस प्रकार के बीज पदों के ग्रहण से सूक्ष्म तत्वार्थ श्रद्धान होना बीज - सम्यवत्व है । अथवा किन्ही बीज पदों द्वारा जीवादि पदार्थों का तथा गणितानुयोग के सूक्ष्म तत्वों का ज्ञान करके किसी भव्यजीव को जो तत्वार्थ श्रद्धान होता है उसे भी बीज सम्यक्त्व कहते हैं । अथवा जो देव, गुरु, धर्म, शास्त्र और तत्वों के स्वरूप पर दृढ़ श्रद्धा करता है, वह समस्त आगमों का रहस्य जान लेता है, इस प्रकार का फल सुनकर जो सम्यक् श्रद्धा कर लेता है, वह भी बीज सम्यक्त्व का धारक है ।
(६) संक्षेप- सम्यक्त्व - जो भव्य आत्मा देव (आप्त), आगम, धर्म और पदार्थ आदि का स्वरूप संक्षेप में जानकर अथवा शास्त्र के पद, गाथा, श्लोक, काव्य, छन्द आदि का सामान्य अर्थ जानकर स्वपरभेद - विज्ञान कर लेता है, तथा इस संक्षिप्त कथन से ही तत्वार्थ श्रद्धान कर लेता है, उसके सम्यक् श्रद्धान को संक्षेप सम्यक्त्व कहते हैं ।
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