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________________ सुश्रद्धा के द्वारा तक पहुँचने के लिए दस सुरुचियाँ | ३५ दशविध रुचिरूप सम्यक् श्रद्धानों को सरागसम्यग्दर्शन में परिगणित किया गया है ।" रुचियाँ सम्यक् श्रद्धा ( सम्यक्त्व या जनमानस विभिन्न रुचियों वाला जो भी हो, ये दस प्रकार की सम्यग्दर्शन) की उत्पत्ति में निमित्त हैं । - होने से सम्यक् श्रद्धा को दस रुचियों में वर्गीकृत कर दिया गया है । प्रत्येक रुचि सम्यक् श्रद्धा या सम्यक्त्व का कारण होने से दिगम्बर परम्परा में कहीं तो इसे रुचि रूप बताया गया है, और कहीं कारण में कार्य का उपचार करके सीधा ही इन्हें सम्यक्त्व कह दिया गया है । दिगम्बरपरम्परा में इन दस नामों में अन्तर है । इनकी व्याख्या में भी कुछ अन्तर है । दिगम्बर परम्परा में दसविध सम्यक्त्व सम्यक् श्रद्धा की यात्रा में उपयोगी होने से हम यहाँ अनगार धर्मामृत, सुदृष्टि तरंगिणी आदि ग्रन्थों के अनुसार उनके नाम तथा क्रमशः व्याख्या दे रहे हैं "आणा - मग्ग- उवएसो, सुत्त-बीय संखेव - वित्थारो । अत्थावगाढ- महागाढं, समतं जिणभासिय उ दसहा ॥ अर्थात् - जिनभाषित सम्यक्त्व दस प्रकार का है - ( १ ) आज्ञा सम्यक्त्व (२) मार्ग - सम्यक्त्व, (३) उपदेश - सम्यक्त्व, (४) सूत्र - सम्यक्त्व, (५) बीज सम्यक्त्व, (६) संक्षेप - सम्यक्त्व, (७) विस्तार - सम्यक्त्व; (८) अर्थ - सम्य. क्त्व, (१) अवगाढ़-सम्यक्त्व, और (१०) महागाढ़-सम्यक्त्व या परमावगाढसम्यक्त्व 12 - - (१) आज्ञा - सम्यक्त्व - ग्रन्थश्रवण या उपदेश श्रवण के बिना ही दर्शनमोह के उपशान्त होने से, अर्हन्त भगवान् की आज्ञा मात्र को शिरोधार्य करने से जो तत्व श्रद्धान उत्पन्न होता है, वह आज्ञा सम्यक्त्व है । अथवा • अल्प बोध प्राप्त सरल परिणामी व्यक्ति स्वयं को अल्पज्ञ तथा तत्वज्ञान १. दसविहे सरागसम्मदंसणे पण्णत्त े, तं.... धम्मरुई । Jain Education International - स्थानांग, स्था० १०, उ०३, सू० ७५१ २. (क) सुदृष्टि तरंगिणी गा. ५, ( ख ) अनगार धर्मामृत अ० २, श्लो. ६२ (ग) उपासकाध्ययन कल्प २१/२३४, (घ) आत्मानुशासन १२-१४, (ङ) राजवार्तिक २/३६/२/२०१/१३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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