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________________ सुश्रद्धा के द्वार तक पहुँचने के लिए दस सुरुचियाँ | ३१ पकड़ कर वह गति-प्रगति करता है और सम्यक् श्रद्धा तक पहुंच जाता है । वैसे तो जीवन की स्वतन्त्र इच्छा को रुचि कहते हैं । स्वातन्त्र्यप्रिय होने के नाते मनुष्य को चीज पसन्द होती है, अच्छी लगती है, या जिस चीज की प्यास होती है, उसमें ही उसकी रुचि या दिलचस्पी होती है । एक लोकोक्ति भी प्रसिद्ध है भिन्नचिहि लोकः' लोगों को रुचियां भिन्न-भिन्न होती हैं। सम्यक् रुचियां ही उपादेय इसका यह मतलब नहीं है कि मनुष्यों की खाने-पीने, पहनने, एवं रहन-सहन की रुचियों से सुश्रद्धा के द्वार तक पहुंचा जा सकता हो, अथवा इन्द्रियों के विभिन्न विषयोपभोगों में रुचि से व्यक्ति सुश्रद्धा के दरवाजे पर दस्तक दे सकता हो । यहाँ उन भौतिक या लौकिक रुचियों या आध्यात्मिक विकास की अंतिम मंजिल मुक्ति तक पहुँचा देने वाली सम्यश्रद्धा या सम्यग्दर्शन के विपरीत गलत रुचियों का कथन कथमपि अभीष्ट नहीं है। यहाँ उन्हीं आध्यात्मिक लोकोत्तर रुचियों का कथन अभीष्ट है, जो सम्यकश्रद्धा या सम्यग्दर्शन को प्राप्त करा देती हों। अर्थात् सम्यग्दर्शन की प्रथम यात्रा जिन रुचियों से हो, वे ही रुचियां यहां उपादेय हैं, अन्य सांसारिक कामभोगों की, रहन-सहन की, खानपान की या इन्द्रियविषयसुखों की रुचियां इस क्षेत्र में उपादेय नहीं हैं। क्योंकि इन संसाराभिमुखी रुचियों को अपना लेने पर तो व्यक्ति संसार की विकट अटवी में भटक जाएगा, वह जन्म-मरण के कुचक्रों में फंसकर मोक्षरूपी अन्तिम लक्ष्य से दरातिदर होता चला जाएगा। इसलिए यहाँ उन्हीं सम्यक् रुचियों का वर्णन है, जो सम्यश्रद्धा या सम्यग्दर्शन के साथ मिलकर मोक्ष तक पहुंचाने में सहायक हों, जो मोक्षाभिमुखी हों । जिन रुचियों को अपनाने पर मनुष्य को संसार सागर को पार करना अटपटा न लगे, मोक्ष की मंजिल पाना जिन रुचियों के द्वारा आसान एवं सुलभ हो जाए, जिन रुचियों के माध्यम से मोक्ष निकटतर प्रतीत होता जाए । संसार के बीहड़ वन से जो रुचियाँ मनुष्य को दूर रखें और मोक्ष के पथिक को मोक्षमार्ग पर ही चलने को प्रेरित करें, वे ही रुचियाँ यहाँ उपादेय हैं । जिन रुचियों को अपनाने पर मोक्ष का मार्ग नीरस, कठोर या विकट न लगे; मोक्ष प्राप्त करने की इतनी तीव्रता, तड़फन, तल्लीनता या तन्मयता हो कि साधक उन रुचियों के सहारे मोक्ष पहुँचकर ही दम ले, बीच में कहीं इधर-उधर सांसारिक विषयों के लुभावने मोहजाल में न फंसे, जिन रुचियों का लक्ष्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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