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________________ सुश्रद्धा की उपलब्धि का व्याकरण | २६ दर्शन या सम्यक् श्रद्धान की उपलब्धि हो गई । वस्तुतः सम्यग्दर्शन की दिव्य ज्योति की उपलब्धि जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है | ऐसी दिव्यज्योति के प्राप्त होने पर मानव को उतनी ही प्रसन्नता होती है, जितनी अन्धे आदमी को सहसा नेत्र - ज्योति प्राप्त होने पर होती है; वल्कि कई बार तो उससे भी अनन्त गुनी प्रसन्नता एवं आनन्द की उपलब्धि उस सम्यग्दर्शन प्राप्त व्यक्ति को होती है; जिसने अनन्त काल तक अपना जीवन मिथ्यात्व के गाढ़ अन्धकार में व्यतीत किया है । किसी जन्मान्ध व्यक्ति को पुण्य की प्रबलता से नेत्रों की ज्योति मिल जाये तो उसकी प्रसन्नता का पार नहीं रहता, क्योंकि वह यही सोचकर आनन्दित होता है कि अब मेरे जीवन में वह अंधेरा नहीं रहेगा, जो मुझे पदार्थों को देखने में रुकावट डालता था । इसी प्रकार सम्यक् श्रद्धान की दिव्य जोति प्राप्त होने पर भी व्यक्ति प्रसन्नतावश यही सोचता है कि अब मेरे जीवन के किसी भी कोने में भाव - अन्धकार नहीं रहेगा, मेरा आन्तरिक जीवन सम्यग्दर्शन के प्रकाश से जगमगाता रहेगा । अब मैं अबाधगति से मोक्ष प्राप्ति के लिए पुरुषार्थं कर सकूँगा । सम्यग्दर्शन की दिव्य ज्योति की उपलब्धि हो जाने पर व्यक्ति को किसी प्रकार का भय नहीं रहता । वह निश्चिन्त होकर अपने निर्दिष्ट पथ पर चलता रहता है । लाटीसंहिता के अनुसार सम्यक्श्रद्धान की उपलब्धि हो जाने पर व्यक्ति के लिए वही परम तप, त्याग, सत्पुरुषार्थ, परम पद, परम ज्योति एवं यम-नियम हो जायेगा | फिर सम्यग्दर्शन को ही परम पद मानकर वह उसी की उपासना और साधना में संलग्न रहेगा । यही सम्यक् श्रद्धान की उपलब्धि का माहात्म्य है । O १ तदेवसत्पुरुषार्थस्तदेव परमं पदम् । तदेव परमं ज्योतिः, तदेव परमं तपः । Jain Education International . -- लाटी संहिता, सर्ग ३, श्लोक २ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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