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२८४ | सद्धा परम दुल्लहा
प्राप्त करते हैं। जीव को पुण्य का फल मिलने के साथ-साथ पाप कर्म का फल भी रोग, शोक आदि के रूप में मिलता है। इसलिए क्रियावादी इन दोनों तत्त्वों का पृथक्-पृथक् अस्तित्व मानते हैं । पुण्य और पाप क्रमशः अमृत
और विष हैं । पुण्य उज्जीवक है, पाप मारक है । दोनों भिन्न-भिन्न गुण और प्रकृति के अधिपति हैं । उच्च भूमिका में आरूढ़ होने पर तो पुण्य को भी छोड़ना पड़ता है, पाप तो पहले की भूमिका में ही छूट जाता है।
आस्रव और संवर का अस्तिव-जैसे-जलभण्डार में संगृहीत जल नलों के द्वारा घर-घर में पहुँचता है, वैसे ही मन-वचन-काया की प्रवृत्तियों (योगों) से आकृष्ट होकर कर्मपुद्गलरूपी जल आत्मा में प्रवेश करता है। इस प्रकार त्रियोगों से आकृष्ट होकर कर्मों का जीव के सन्निकट आना आस्रव है। रोग-द्वषादि भावों के प्रवाह का आना भावास्रव है और भावास्रव से कर्मदलिकों का जीव के निकट आने का नाम द्रव्यास्रव है। इन दोनों आस्रवों से आत्मा में कर्मों का प्रवेश होने के बाद ही कर्मबन्ध होता है । शुभाशुभ कर्मों का आत्मा में आगमन मिथ्यात्व, अवत, प्रमाद, कषाय
और योग के कारण होता है। उक्त कारणों को रोक देने से आस्रव का निरोध हो जाता है, उसे ही संवर कहते हैं। क्रियावादियों का कथन हैसंसारी जीवों में प्रायः आस्रव और संवर दोनों का क्रम चलता रहता है। इसके अस्तित्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। परन्तु अक्रियावादी कहते हैं कि आस्रव या संवर आत्मा में प्रविष्ट होते एवं रुकते नजर नहीं आते, इसलिए इन्हें हम नहीं मानते। किन्तु उनके न मानने से शुभाशुभ कर्म अपना फल देने से नहीं रुकते।
___ वेदना का अस्तित्व-- वेदना कहते हैं सुख-दुःख की अनुभूति को। वह तो क्रियावादी और अक्रियावादी दोनों को होती है । परन्तु क्रियावादी वेदना के मूल कारण कर्म और आत्मा के संयोग को मानकर इन दोनों के संयोग को छोड़ने को प्रयत्न करता है, क्योंकि वे दोनों प्रकार के वेदन वेदनीय कर्म के उदय से होते हैं । क्रियावादी दुःख में तड़फता नहीं, सुख में फूलता नहीं, समभाव रखता है, इसलिए उच्चभूमिका में वेदनीय कर्म से भी वह मुक्त हो जाता है । जबकि अक्रियावादी सुख के वेदन के समय अहंकारग्रस्त, मदोन्मत्त होकर फूलता है, दुःख के समय हाय-तोबा मचाता है और नाना अशुभ कर्मों का बन्धन कर लेता है।
निर्जर का अस्तित्व-कर्मों को भोग लेने के बाद उनके आंशिक क्षय का नाम निर्जरा है । निर्जरा दो प्रकार की है--सकामनिर्जरा
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