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आस्तिक्य का शूल : आत्मवाद | २२७ को भी आश्वस्त और निर्भय बनाया । परीक्षक देव भी अर्हन्नक की आत्मा पर दृढ़ आस्था से प्रभावित हुआ और नमन करके चला गया ।
यह आत्मा पर परम आस्था का ही चमत्कार था कि चण्डकौशिक जैसे भयंकर विषधर की बांबी पर प्रभु महावीर निर्भय और निःसंकोच होकर चले गए। अपने पूर्वस्वभावानुसार उसने भगवान महावीर के अंगूठे पर डसा । किन्तु उत्कृष्ट आस्था शिरोमणि भगवान महावीर इससे जरा भी घबराये या भयभीत नहीं हुए प्रत्युत चण्डकौशिक की आत्मा के प्रति वात्सल्य भाव की धारा बहाई । यही कारण है कि जहाँ उस सर्प ने डसा था, वहाँ अंगूठे से रक्त के बदले दूध निकला ।
आत्मा पर दृढ़ आस्था के परिणामस्वरूप चण्डकौशिक के हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा । वह प्रभु महावीर के प्रति नतमस्तक हो गया, उसका हृदय परिवर्तन हो गया। वह क्रूर सर्प के चोले में भी क्षमाधारी साधु सा
बन गया ।
आत्मवादी किसी भी कठिन परिस्थिति में आत्मा के स्वभाव को नहीं छोड़ता, वह निर्भय एव अविचलित रहता है ।
कामदेव श्रमणोपासक की एक देव ने कठोर अग्नि परीक्षा ली। वह पौषधोपवास व्रत में आत्मचिन्तनमग्न था । देव ने उसे विविध प्रकार से डराया धमकाया । जब वह इससे विचलित न हुआ तो उसके पुत्रों के शरीर को देव ने वैक्रिय शक्ति से टुकड़े-टुकडे करके उसके सामने डाल दिये। इस पर भी आत्मा पर दृढ़ आस्थाशील कामदेव विचलित न हुआ तो उसकी माता को उसके समक्ष लाकर देव ने अपनी वैक्रिय शक्ति से उसके भी प्राण लेने का दृश्य बताया। इस बार देव गुरु, धर्म एवं होते हुए भी माता को देव के चंगुल से छुड़ाने के श्रावक जोर से चिल्लाया । माता ने जब कामदेव से सारा वृत्तान्त पूछा तो ज्ञात हुआ कि यह सब देवमाया थी ।
आत्मा पर दृढ़ आस्था लिए श्रद्धालु कामदेव
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दान का अभ्यास : आत्मवाद को मानने से ही
आत्मवाद को मानने से सबसे बड़ा लाभ यह है कि मनुष्य शरीर, इन्द्रिय, कुटुम्ब - परिवार धन, सम्पत्ति आदि परभावों से अपनी आत्मा को पृथक मानकर भेदविज्ञान का प्रयोग करने में नहीं हिचकिचाता । शरीर और शरीर से सम्बन्धित पदार्थों पर से ममत्व छोड़ने और म्यान को
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