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आस्तिक्य का मूल : आत्मवाद । २२१
घर के लोगों ने उसमें आश्चर्यजनक परिवर्तन देखा । वह प्रायः कहने लगा"मैं ब्राह्मण हूँ । तुम लोगों के हाथ का बना खाना नहीं खाऊँगा । मुझे अपनी पत्नी के पास ले चलो ।"
लोग समझने लगे कि बीमारी के कारण वह इस प्रकार ऊटपटांग बोलता है | अतः काफी उपचार किया गया, मगर किसी प्रकार फायदा नहीं हुआ और जसवीर द्वारा समझदार लोगों का सा व्यवहार देखकर उसके कथनानुसार उसे उस गाँव में ले जाया गया । वहाँ जाने पर पता चला कि शोभाराम त्यागी नामक एक ब्राह्मण युवक की मृत्यु एक दुर्घटना में हुई है । जसवीर स्वयं को शोभाराम ही बताता था । उसने अपनी भू० पू० पत्नी, भाई एवं माँ को भी पहचान लिया । उसने शोभाराम से सम्बन्धित कई गुप्त बातें भी बताईं। फिर वह उस दुर्घटनास्थल पर भी लोगों को ले गया । सम्बन्धित लोगों ने उस घटना एवं स्थल की पुष्टि की। ऐसी घटनाओं को जानकर कौन पुनर्जन्म एवं आत्मा के अस्तित्व से इन्कार कर सकता है । अतः आत्मा शरीर के साथ ही नहीं मर जाती, वह अपने कृतकर्मानुसार विभिन्न गतियों और योनियों में जाती है और कर्मों से सर्वथा मुक्त होने पर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जाती है ।
आत्मा का स्वरूप
कई दर्शन एवं धर्म-सम्प्रदाय आत्मा के अस्तित्व को तो मानते हैं, परन्तु आत्मा के स्वरूप के विषय में उनमें काफी मतभेद है ।
जैन दर्शन की दृष्टि से आत्मा (जीव ) का स्वरूप इस प्रकार है'जीवो अणाइ अनिघणो अविनासी अक्खओ धुवो निच्चं
'जीव ( आत्मा ) अनादि है, अनिधन है, अविनाशी है, अक्षय है, ध्रुव है और नित्य है ।'
आत्मा निश्चयनय से अनादि है, उसका किसी विशेष समय पर जन्म नहीं हुआ, वह अजन्मा है । किन्तु व्यवहारनय की अपेक्षा से जीव सुख-दुःखवेदनावश शुभाशुभ कर्म बाँध कर उसके फलस्वरूप नाना गतियों और योनियों में, विविध पर्यायों में उत्पन्न होता है । पर्यायदृष्टि से एक गति से दूसरी गति में जाने की अपेक्षा उसकी आदि मानी जाती है ।
आत्मा को निश्चयनय की दृष्टि से अनिधन इसलिए कहा गया है कि वह कभी मरता नहीं, अमर है । व्यवहारनय की दष्टि से जो यह कहा जाता है कि अमुक जीव मर गया । उसका अर्थ इतना ही है कि उसने जिस देह को
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