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________________ आस्तिक्य का मूल : आत्मवाद | २१७ जो इन्द्रियग्राह्य नहीं है, फिर भी उनका अस्तित्व माना जाता है । इन्द्रियप्रत्यक्षवादी लोगों ने अपने पूर्वजों को नहीं देखा, फिर भी वे उनके अस्तित्व को मानते हैं । इसलिए एकमात्र इन्द्रियप्रत्यक्ष को मानने से संसार का कोई व्यवहार चल नहीं सकता। (१) मैं सूखी हैं, मैं दूःखी हैं, इस प्रकार स्वानुभव (स्व-संवेदन) प्रमाण से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है। ऐसा संवेदन पंचभूतात्मक जड़ शरीर को नहीं होता। तज्जीव-तच्छरीरवादी या भूतचैतन्यवादी के मतानुसार पंचभौतिक शरीर को या शरीर को ही आत्मा कथमपि नहीं माना जा सकता, क्योंकि मृत शरीर में पंचभूत होते हुए भी चैतन्य नहीं होता, न ही जड़ शरीर ज्ञान, इच्छा आदि गुणों का उपादान हो सकता है, वह तो आत्मा ही हो सकता है, जो शरीर आदि से पृथक् है। अचेतन पंचभूत या शरीर कभी चेतन नहीं हो सकता, क्योंकि दोनों में परस्पर अत्यन्ताभाव है। (२) भेद या ग्राह्य (साधन) इन्द्रिय समूह से ज्ञाता या साधक आत्मा पृथक् है। मृत शरीर में इन्द्रियाँ होने पर भी ज्ञान प्राप्त करने वाला आत्मा न होने से उनसे किसी प्रकार का ज्ञान नहीं होता। (३) इन्द्रियों के नष्ट हो जाने पर भी देखे-सूने या जाने हए विषयों का स्मरण होता है। वह स्मरण कर्ता चैतन्य रूप आत्मा ही है। (४) इन्द्रियाँ अपने-अपने विषय को ही ग्रहण करती हैं। एक इन्द्रिय दुसरी इन्द्रिय के विषय को नहीं जान सकती, किन्तु सभी इन्द्रियों के विषयों का एक साथ संकलनात्मक ज्ञान (अनुभव) करने वाला आत्मा (५) आत्मा के अस्तित्व के विषय में कोई बाधक प्रमाण न मिलने से, तथा असत् का निषेध नहीं होता, जिसका निषेध होता है, उसका अस्तित्व अवश्य होता है, इन युक्तियों से आत्मा का अस्तित्व सिद्ध होता है। (६) चैतन्य गुण प्रत्यक्ष होने से गुणी चेतन (आत्मा) की सत्ता भी प्रमाणित हो जाती है। तथा वस्तु का अस्तित्व उसके असाधारण गुण से सिद्ध होता है, इस न्याय से आत्मा में चैतन्य (उपयोग) नामक विशेष गुण है, जो दूसरे किसी भी पदार्थ में नहीं है। यह भी आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003188
Book TitleSaddha Param Dullaha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1989
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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